भारत रत्न, पद्म भूषण, पद्म विभूषण, दादा साहेब फाल्के और न जाने कितने ही पुरस्कारों से सम्मानित स्वर कोकिला लता मंगेशकर सुरों की रानी थीं जिन्होंने दशकों तक संगीत की दुनिया पर राज किया। आज 6 फ़रवरी 2022 को 92 वर्ष की उम्र में वे पूरी दुनिया को अलविदा कह गयीं। संगीत जगत में उनके जैसा न कोई था और न होगा। उनकी मौत एक युग का अंत है। सुर साम्राज्ञी लता मंगेशकर की न सिर्फ आवाज़ किसी के भी दिल के तारों को झनकारने के लिए काफी थी बल्कि उनकी असल ज़िंदगी भी बेहद प्रेरणादायी है। उन्होंने अपनी ज़िंदगी अकेले व् अपनी शर्तों पर गुज़ारी। अब लता मंगेशकर हमारे बीच नहीं हैं पर उनकी रुहानी आवाज़ और उनसे जुड़ी यादें अमर हैं।
लता मंगेशकर जिनका छ: दशकों का कार्यकाल उपलब्धियों से भरा पड़ा है, ने लगभग तीस से ज्यादा भाषाओं में फ़िल्मी और गैर-फ़िल्मी गाने गाये हैं व उनकी पहचान भारतीय सिनेमा में एक पार्श्वगायक के रूप में रही है। लता जी की जादुई आवाज़ के भारतीय उपमहाद्वीप के साथ-साथ पूरी दुनिया में दीवाने हैं। टाईम पत्रिका ने उन्हें भारतीय पार्श्वगायन की अपरिहार्य और एकछत्र साम्राज्ञी स्वीकार किया है।
5 वर्ष की उम्र में ही लता ने अपने पिता द्वारा निर्देशित मराठी नाटकों में एक अभिनेत्री के तौर पर कार्य करना शुरू कर दिया था। जब वह 13 साल की थीं, तब 1942 में उनके पिता की हृदय रोग के कारण मृत्यु हो गई और उनके पिता की मृत्यु के बाद, मंगेशकर परिवार के सबसे करीबी दोस्त- मास्टर विनायक (विनायक दामोदर कर्नाटकी) ने उनके परिवार की देखभाल की और उनकी मदद एक अभिनेत्री और गायक बनने के रूप में की।
वर्ष 1942 में, उन्होंने अपना पहला गीत “नाचू या गडे,खेळू साड़ी मणि हाउस भारी” मराठी फिल्म “किती हसाल” के लिए गाया, हालांकि, बाद में इस गाने को अंतिम कट से हटा दिया गया था।
वर्ष 1942 में, उन्होंने अपना पहला प्रदर्शित गीत ‘नताली चैत्राची नवालाई’ एक मराठी फिल्म ‘पहिली मंगलागौर’ में गाया था।
छोटी उम्र से ही अपने भाई-बहनों, मीना, आशा, उषा और हृदयनाथ को संभाला व् उन्हें काबिल बनाया।
वर्ष 1943 में, उन्होंने पहला हिंदी गीत- ‘माता, एक सपूत की दुनिया बदल दे तू’ मराठी फिल्म “गजाभाऊ” के लिए गाया था।
वर्ष 1945 में, लता मुंबई आईं। उन्होंने मास्टर विनायक की पहली हिंदी फिल्म “बडी माँ” (1945) में अपनी छोटी बहन आशा के साथ एक छोटी सी भूमिका निभाई।
जब गुलाम हैदर (संगीत निर्देशक) ने लता को फिल्म शहीद (1948) के निर्माता सशधर मुखर्जी से मिलाया तो मुखर्जी ने लता की आवाज़ को ‘बहुत पतली’ बताते हुऐ उन्हें खारिज कर दिया। इसके बाद गुलाम हैदर ने कहा कि आने वाले वर्षो में फिल्म के निर्माता और निर्देशक लता का पैर पकड़ कर भीख मांगेंगे कि वह उनकी फिल्मों में गीत गाए।
लता का पहला सफल गीत “दिल मेरा तोड़ा हाय मुझे कहीं का न छोड़ा तेरे प्यार ने (मजबूर, 1948) था।
एक साक्षात्कार में, लता मंगेशकर ने बताया कि गुलाम हैदर उनके असली गुरु थे, जिन्होंने उनकी प्रतिभा पर भरोसा किया।
उर्दू/हिंदी गीत गाते हुए मराठी उच्चारण करने पर दिलीप कुमार ने लता मंगेशकर के ऊपर एक नकारत्मक टिप्पणी की थी। इसके बाद लता ने उर्दू का सटीक उच्चारण सीखने की ठान ली और शफी नामक एक उर्दू अध्यपक से उर्दू में उच्चारण करना सीखने लगीं।
गीत “आएगा आनेवाला” (महल, 1949) से वह काफी लोकप्रिय हो गईं, और ऐसा मानते है कि इस गीत को जिस ख़ूबसूरती से लता मंगेशकर ने गाया है, ऐसा कोई अन्य गायक नहीं गा सकता है।
वर्ष 1956 में, उनका एक गीत “रसिक बलमा” (चोरी चोरी) ने सर्वश्रेष्ठ गीत के लिए फिल्मफेयर पुरस्कार जीता। फिल्मफेयर अवॉर्ड 1958 में शुरू किए गए थे और पार्श्व गायकों का कोई भी वर्ग इसमे शामिल नहीं था, इसलिए उन्हें कोई पुरस्कार नहीं मिला, और उनके विरोध के बाद, इस श्रेणी को 1958 में शामिल किया गया था।
लता को सर्वश्रेष्ठ पार्श्वगायक के लिए पहला फिल्मफेयर पुरस्कार गीत “आजा रे परदेसी” (मधुमत, 1958) के लिए मिला। उन्होंने 1958 से 1966 तक सर्वश्रेष्ठ महिला पार्श्वगायक के लिए फिल्मफेयर पुरस्कारों पर एकाधिकार किया। अपनी उदारता का परिचय देते हुए, वर्ष 1969 में लता ने फिल्मफेयर पुरस्कार लेने से मना कर दिया ताकि नए लोगो की प्रतिभाओं को बढ़ावा मिल सके।
उन्होंने फिल्म “परिचय” (1972) में सर्वश्रेष्ठ महिला पार्श्व गायिका के लिए पहला नेशनल फिल्म अवार्ड जीता।
वर्ष 1962 की, शुरुआत में उन्हें हल्का जहर दे दिया था, और उसके बाद, वह लगभग 3 महीने के लिए बिस्तर पर रहीं।
27 जनवरी 1963 को, लता ने चीन-भारत युद्ध के पृष्ठपट से एक देशभक्ति गीत “ऐ मेरे वतन के लोगों” गाया। यह गीत सुनने के बाद पंडित जवाहर लाल नेहरू (भारत के पूर्व प्रधान मंत्री) की आँखों में आँसू आ गए थे।
वर्ष 2001 में, उन्हें भारत के सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार भारत रत्न से सम्मानित किया गया था।
मध्यप्रदेश सरकार और महाराष्ट्र सरकार ने क्रमशः 1984 और 1992 में लता मंगेशकर पुरस्कार की स्थापना की।
एक रिपोर्ट के मुताबिक दिवंगत क्रिकेटर और भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड (BCCI) के पूर्व अध्यक्ष राज सिंह डूंगरपुर, लता मंगेशकर के भाई हृदयनाथ मंगेशकर के करीबी दोस्त थे। राज सिंह राजस्थान के शाही परिवार से ताल्लुक रखते थे और डूंगरपुर के तत्कालीन राजा स्वर्गीय महारावल लक्ष्मण सिंहजी के सबसे छोटे बेटे थे। दोनों के बीच मुलाकातों का सिलसिला बढ़ा और लता मंगेशकर को उनसे प्यार हो गया। कहते हैं कि लता उन्हें प्यार से मिट्ठू कहकर बुलाती थीं। दोनों शादी का मन बना रहे थे लेकिन जब महारावल लक्ष्मण सिंहजी ने शादी होने से मना कर दिया। वजह ये थी कि लता मंगेशकर एक शाही परिवार से नहीं थी और महारावल लक्ष्मण अपने बेटे राज सिंह की शादी एक आम लड़की से नहीं करना चाहते थे। इसके बाद लता मंगेशकर जीवन भर कुंवारी रहीं।
लता जी का निधन पूरी दुनिया के लिए हृदयविदारक है। उनके गीतों की विशाल श्रृंखला में, भारत के सार और सुंदरता को प्रस्तुत करने वाले पीढ़ियों ने अपनी आंतरिक भावनाओं की अभिव्यक्ति पाई। भारत रत्न, लता जी की उपलब्धियां अतुलनीय रहेंगी पर व्यथित मन से लिखना पड़ रहा है कि आज, जादुई आवाज़ के युग का अंत हो गया।
|| ॐ शान्ति ||