लव’ अर्थात प्रेम ‘जिहाद’ मतलब युद्ध….सरल व खुले दिमाग से समझे तो प्रेम और युद्ध एक साथ हो नहीं सकते, परन्तु इन दोनों का समावेश हुआ है इस का अर्थ है मात्र षड्यंत्र। लव जिहाद के मामले प्रायः मुसलमान लड़कों और हिंदू लड़कियों के बीच हो रहे हैं। लेकिन ‘लव जिहाद शब्द का प्रयोग आरम्भ हुआ था केरल से। पिछले 10-11 वर्षों में केरल और कर्नाटक के पादरी शिकायत करते रहे कि लगभग 4000 ईसाई लड़कियों को जबरन मुसलमान बनाया गया है। उनका आरोप है कि धमकाकर, लालच देकर या झूठ बोलकर उनका धर्म-परिवर्तन करा दिया गया है। इस आरोप की जांच-पड़ताल सरकारी एजेंसियों ने की और कुछ इस्लामी संगठनों के ऐसे प्रमाण मिले, जो धर्म-परिवर्तन (तगय्युर) की मुहीम चलाए हुए हैं। केरल से सम्पूर्ण भारत में फैल चुका है यह लेकिन सत्य कहू तो विश्व में।
उत्तर प्रदेश सरकार महिलाओं के जबरदस्ती धर्म परिवर्तन के खिलाफ एक अध्यादेश लेकर आई है। इसमें दो अलग धर्मों के लोगों के बीच होने वाले विवाह को भी रखा गया है और ऐसा अध्यादेश लाने वाला उत्तर प्रदेश, देश का पहला राज्य बन गया है। इसके तहत अगर दो अलग-अलग धर्मों के लोग आपस में विवाह करते हैं और जांच में ये पाया जाता है कि इस विवाह का मकसद धर्म परिवर्तन कराना था तो अपराधी को 1 से 10 वर्ष तक की सजा हो सकती है।
उत्तर प्रदेश ही नहीं मध्य प्रदेश और हरियाणा में भी ऐसे ही कानून लाने की प्रक्रिया शुरू हो गयी है। लेकिन उत्तर प्रदेश ने ये काम पूरे देश में सबसे पहले किया है और इसके पीछे सबसे बड़ी वजह ये है कि हाल ही में उत्तर प्रदेश में ऐसे कई मामले सामने आए हैं।
कानपुर में 23 नवंबर को उत्तर प्रदेश SIT ने लव जेहाद के 11 मामलों का खुलासा किया है। ईसाइयत व इस्लाम का धर्मांतरण का इतिहास शोचनीय रहा है। यूरोप में करीब एक हजार साल के इतिहास को अंधकार-युग कहते हैं और यदि भारत, अफगानिस्तान, ईरान और मध्य एशिया का मध्युगीन इतिहास पढ़ें तो पता चलेगा कि यदि सूफियों को छोड़ दें तो इस्लाम जिन कारणों से भारत में फैला है, उनका इस्लाम के सिद्धांतों से लेना-देना नहीं है। भारत में ईसाइयत और अंग्रेजों की गुलामी एक ही सिक्के के दो पहलू रहे हैं। इसका तोड़ आर्य समाज ने निकाला था और वह था ‘शुद्ध आंदोलन’, लेकिन वह अधर में लटक गया, क्योंकि मजहब पर जात भारी पड़ गई, ‘घर वापसी’ का भी वही हाल है।
मेरी जानकारी के मुताबिक हिंदू धर्म ही एकमात्र ऐसा है, जो मानता है कि ‘एकं सदविप्रा बहुधा वदन्ति’ यानी सत्य तो एक ही है लेकिन विद्वान उसे कई रूप में जानते हैं। इसीलिए भारत के हिंदू, जैन, बौद्ध या सिख लोगों ने धर्म-परिवर्तन के लिए कभी युद्ध या तिजोरी का सहारा नहीं लिया।
-आदित्य तिक्कू