गुरुवार, 11 मार्च को महाशिवरात्रि है। इसी दिन हरिद्वार कुंभ में पहला शाही स्नान भी होगा। इस शाही स्नान में देशभर से आए लाखों नागा साधु गंगा में डुबकी लगाएंगे। इतनी बड़ी संख्या में नागा साधु सिर्फ कुंभ के शाही स्नान में ही एक साथ दिखाई देते हैं। कुंभ के बाद सभी साधु गुप्त वास में रहने के लिए चले जाते हैं। नागा साधु अपने खास श्रृंगार की वजह से सभी को आकर्षित कर लेते हैं। कम लोग ही जानते हैं कि नागा साधु के श्रृंगार में 17 चीजों का उपयोग होता है।
शाही स्नान में पूरे श्रृंगार के साथ दिखाई देते हैं नागा साधु
कुंभ मेले के शाही स्नान में पूरे श्रृंगार के साथ नागा साधु शामिल होते हैं। नागा साधुओं को पूरे श्रृंगार में देखने का मौका कम ही मिलता है। नागा साधु के श्रृंगार में इन 17 चीजों का उपयोग होता है। लंगोट, चंदन, पैरों में कड़ा, अंगूठी, पंचकेश, कमर में फूलों की माला, माथे पर रोली का लेप, कुंडल, हाथों में चिमटा, डमरू, जटाएं, तिलक, काजल, हाथों में कड़ा, कमंडल, बदन पर भस्म का लेप, बाजुओं पर रूद्राक्ष से श्रृंगार किया जाता है।
ये हैं नागा साधु से जुड़ी अन्य बातें
नागा साधु का अर्थ यह है कि जो साधु बिना वस्त्रों को रहते हैं, वे नागा साधु होते हैं। इन्हें नागा संन्यासी भी कहा जाता है। आदि गुरु शंकराचार्य ने सनातन धर्म की स्थापना और रक्षा के लिए चार पीठ बनाई थीं। ये चारों पीठ देश चार कोनों में आज भी चल रही हैं। ये पीठ हैं गोवर्धन पीठ, शारदा पीठ, द्वारिका पीठ और ज्योतिर्मठ पीठ। इन पीठों के अंतर्गत 13 अखाड़े हैं। इन अखाड़ों में नागा साधु रहते हैं। मान्यता है कि नागा साधु एक सैनिक की तरह सनातन धर्म की रक्षा करते हैं।
बहुत कठिन होता है नागा साधु का जीवन
नागा साधुओं का जीवन बहुत कठिन होता है। ये तपस्या की तरह होता है। हमेशा समाज से अलग रहना और पूरा समय भक्ति-पूजा-पाठ मंत्र जाप में व्यतीत करना। एक सामान्य व्यक्ति को नागा साधु बनने के लिए लंबी प्रक्रिया से गुजरना पड़ता है। इसमें कई वर्षों का समय लग जाता है।