आज की भाग-दौड़ भरी ज़िंदगी में हम स्वयं अपनी ही जीवन शैली व दैनिक कार्यों में कुछ इस कदर उलझ जाते हैं कि हमारे समाज को खोखला करने वाले अपराधों को दूर करने के लिए किस प्रकार के सार्थक प्रयास किए जाएं, इस बारे में उदासीन रवैया अपनाते हैं और जब हमारे साथ या हमारे अपनों के साथ कुछ गलत होता है तब शुरु हो जाता है ब्लेमगेम. उदाहरण, पुलिस ने अपनी ज़िम्मेदारी बखूबी नहीं निभाई, सरकार ने सख़्त नियम नहीं बनाए इत्यादि. पर सच तो यह है कि दूसरों पर दोषारोपण करने के बजाए हम जरा सा समय निकाल कर खुद ये सोचें कि हमारे सभ्य समाज में होने वाले अपराध, हमारी स्वयं की ज़िंदगी पर भी कभी न कभी, कहीं न कहीं प्रतिकूल प्रभाव डाल सकते हैं, यदि हम पीड़ितों के साथ ‘सहानुभूति’ के बजाय ‘समानुभूति’ करें तो शायद हर प्रकार के अपराध से निपटने के तरीके भी स्वयं हमारे सामने आ जाएं. हमारे समाज में फैली एक ऐसी ही गंदगी है- बाल शोषण ,जो हमारे समाज ही नहीं बल्कि संपूर्ण राष्ट्र, हमारे देश के भविष्य को अंधकार की ओर ले जा रही है.
‘बाल शोषण’ वह घिनौना कृत्य है जो एक अबोध बालक की मानसिकता व उसके जीवन को झकझोर कर रख देता है. बाल शोषण हमारे समाज पर एक बेहद बदनुमा दाग है जिसकी जड़ें न सिर्फ शहरों में बल्कि गाँवों में भी फैली हुई हैं जो एक बच्चे के कोमल मन-मस्तिष्क को तमाम विकृतियों से भर उनके संपूर्ण जीवन को बर्बाद कर विनाश की ओर ढकेल सकता है.
बाल-शोषण का सीधा तात्पर्य किसी भी बच्चे को शारीरिक, मानसिक या भावनात्मक स्तर पर जान-बूझकर क्षति पहुँचाना है. इसके अंतर्गत किसी भी बच्चे की सामान्य जरुरतों को पूरा न करना, दुर्व्यवहार या हानिजनक व्यवहार, दुर्वचन, गाली, अपशब्दों का प्रयोग, बच्चे के आत्मसम्मान के विरुद्ध कार्य करना, बच्चे पर ध्यान न देना, उनकी उपेक्षा करना या ख्याल न रखना, उनको स्नेह से वंचित रखना, मारना, पीटना, अत्यधिक श्रम करवाना या किसी भी प्रकार का शारीरिक या मानसिक दुराचार करना जैसे अक्षम्य अपराध सम्मिलित हैं.
कोई भी बच्चा यदि दुर्भाग्यवश बाल शोषण का शिकार हो जाए तो वह डिप्रेशन, मेंटल डिसआर्डर, सेक्शुअल प्राब्लम्स जैसी गंभीर परेशानियों की चपेट में आ सकता है. इसलिए इस विकृति का हमारे समाज से जड़-मूल समेत सर्वनाश करने के लिए हमें स्वयं जागरुक होना पड़ेगा.
यदि आपको ऐसा प्रतीत हो रहा है कि आपक बच्चा कुछ गुमसुम सा हो गया है तो उससे उसकी परेशानी को जानने की कोशिश करें. यदि संभव हो तो एक योग्य काउंसलर की मदद लें. स्वयं माँ-बाप को भी इस बात का ध्यान रखना चाहिये कि ज़िंदगी की भाग-दौड़ व परेशानियों को खुद पर हावी न होने दें क्योंकि कहीं न कहीं बड़ों की ही मानसिक कुंठाओं व विकारों का शिकार बनते हैं, अबोध बच्चे.
अपने बच्चों का ध्यान रखें, धैर्यपूर्वक उनकी बात को समझें, उन्हें बेहतर से बेहतर परवरिश दें और साथ की साथ उन्हें उनके अधिकारों से भी अवगत कराएं . उनके साथ मित्रवत व्यवहार करें. उनकी परेशानियों को समझें. यदि किसी प्रकार की अनहोनी की आशंका हो तो तुरंत सख़्त कदम उठाएं व बच्चों को भी प्रोत्साहित करें ताकि वे मौखिक बन पूरी हिम्मत व सावधानी के साथ स्वावलंबी बन स्वयं जागरुक रहें व एक बेहतर पथ पर सफलतापूर्वक अग्रसर होते रहें.