हमारे देश में हमें विभिन्न परंपराएं, संस्कृति, धर्म, मान्यताएं आदि देखने को मिलती हैं. ये विभिन्नता ही हमारे देश को अन्य देशों से अलग बनाती है और विभिन्नता में एकता का मंत्र हमारे देश के गौरव को बढ़ाता है. भारतीय शिल्प व विभिन्न कलाओं में भी इसका असर देखने को मिलता है. देश के विभिन्न प्रदेशों की अपनी अपनी संस्कृति, पहनावा आदि है जो उन्हें दूसरे प्रदेशों से पृथक करता है और उनकी संस्कृति को दर्शाता है. संस्कृति की यह भिन्नता कहीं न कहीं उनकी पहचान भी बन जाती है. फ़ैशन जगत में भी इस विभिन्नता का जमकर उपयोग किया जाता है. किसी प्रदेश विशेष के पहनावे, आभूषणों के इतिहास को आज के परिवेश के साथ जोड़्कर फ़ैशन जगत में परिधानों व आभूषणों को नया आयाम दिया जाता है. यह सुखद व रचनात्मक क्रियाएं हमारे जीवनशैली व सौंदर्य में इज़ाफा करती हैं. इसी संदर्भ में आज हम नज़र डालेंगे महाराष्ट्र प्रदेश के आभूषणों की विशेषताओं पर.
महाराष्ट्र के आभूषणों का अपना एक पृथक अस्तित्व व पहचान है. देखने में अत्यधिक सौंदर्यपरक ये आभूषण किसी भी स्त्री के लालित्य में चार चाँद लगाने में पूर्ण रुप से सक्षम हैं. मराठा पेशवा शासनकाल से प्रेरित महाराष्ट्र के आभूषणों की अपनी ही एक अलग अदा है. इन आभूषणों का निर्माण अधिकतर महाराष्ट्र के कोल्हापुर में होता है. इनकी सबसे बड़ी विशेषता यह है कि प्रत्येक आभूषण के अभिकल्प के पीछे एक सोच है, एक उद्देश्य है. बात चाहे कोल्हापुरी साज की हो या बेलपान वज्रटिक हार की, इनमें सम्मिलित प्रत्येक मोटिफ के इस्तेमाल की अपनी एक वजह होती है. बात चाहे स्वयं को नकारात्मक ऊर्जाओं से बचाने की हो या देवी देवताओं पर अटूट विश्वास की हो, महाराष्ट्र के आभूषणों को तैयार करने में इन बातों को ध्यान में रखा जाता है. प्रमुख रुप से जो महाराष्ट्रियन आभूषण महिलाओं के आकर्षण का केंद्र रहे हैं वे निम्नलिखित हैं:
करवरी नथ, को मराठी महिलाओं का सबसे प्रियतम आभूषण माना जाता है.बसरा मोती से जड़ी, इन नथों के डिज़ाइन में माणिक और पन्ना जैसे बेशकीमती रत्नों को जोड़्कर, इनकी खूबसूरती में इज़ाफा किया जाता है.
गुलसरी, पारंपरिक महाराष्ट्रियन चोकर को कहते हैं जिसे शुद्ध सोने के तार से बनाया जाता है, प्रमुख आभूषणों की गिनती में आता है.
वज्रटिक, जवारी अनाज के आकार के बीड्स के संयोजन से बनता है और स्त्रियों के लालित्य में चार चाँद लगाता है.
बेलपान वज्रटिक हार, बिल्व पत्र की पवित्र पत्ती के आकार को ध्यान में रख कर डिज़ाइन किया जाता है. इसकी खूबसूरत डिज़ाइन के चलते ये मराठी महिलाओं के आकर्षण का केंद्र है.
मोहन माला , एक लंबा हार है जो सोने की मोतियों की कई लेयर्स व चेन स्ट्रिंग्स से बनता है और ये सूर्य के आकार के पेंडेंट से सुसज्जित होता है.
सूर्य हार, सूर्य की किरणों की डिज़ाइन से लैस होता है व महिलाओं के व्यक्तित्व में चार चाँद लगाता है.
कोल्हापुरी साज, महाराष्ट्रियन महिलाओं के लिए अत्यंत माहत्वपूर्ण है. मराठी महिलायें इसे मंगलसूत्र के रुप में इस्तेमाल करती हैं. यह जव मणि व विभिन्न पत्तियों की डिज़ाइन से लैस होता है जिनमें खूबसूरत नक्काशी की जाती है जो इसके सौंदर्य को और अधिक बढ़ाता है. इसके आलावा कोल्हापुरी साज में एक छोटा पेंडेंट होता है जिसमें माणिक रत्न जड़ा होता है.
कोल्हापुरी साज में विभिन्न पेंडेंट्स को सम्मिलित किया जाता है. इनमें 21 पेंडेंट्स भगवान विष्णु के दस अवतारों को दर्शाते हैं, 8 पेंडेंट्स अष्ट्मंगल, 02 पेंडेंट्स माणिक और पन्ना रत्न और आखिरी पेंडेंट् ताबीज का होता है जिसे डोरला कहते हैं. मान्यता है कि इसे घारण करने से घारणकर्ता की नकारात्मक ऊर्जाओं से रक्षा होती है. इसके मध्य में माणिक रत्न जड़ा जाता है . हार में मसा ( मछली), कमल, करले, चन्द्र , बेलपान , शंख , नाग, कसम और भुंगा, बाघनख, ताबीज , लाल और हरा पनाड़ी, कीर्ति मुख, एक दूसरे के विपरीत स्थापित होते हैं.
चंपाकली हार , गजरे की भाँति दिखने वाला ये हार पुष्पों की आकृति से प्रेरित होकर तैयार किया जाता है.
पुतली हार , पारंपरिक कोल्हापुरी माले को कहते हैं जिसमें लक्ष्मी अथवा राम सीता की आकृति को जटिल नक्काशी द्वारा उकेरा जाता है.
चंदन हार, तीन से चार सोने की चेन को मिलाकर चंदन हार तैयार किया जाता है.
कान बालियाँ, मोती से बनी अदभुत बालियों को कहते हैं. इनका महाराष्ट्रियन आभूषणों में विशेष स्थान है. कुड़्या बालियाँ मोतियों के गुच्छे की तरह लगती है और स्त्री सौंदर्य को नया आयाम देती हैं. भिक बालियों को पुरुष धारण करते हैं.