ज़िंदगी क्या है? यह एक ऐसा सवाल है जिस पर कवियों -शायरों, दार्शनिकों और विचारकों ने न जाने कितना सोचा-विचारा, कहा और लिखा है. शायद ही कोई ऐसा हो जिसने कभी न कभी, किसी न किसी मोड़ पर यह न सोचा हो या सोचने को मजबूर न हुआ हो कि आखिर ज़िंदगी है क्या? इसका मकसद और मतलब क्या है? ज़िंदगी है ही इतनी जटिल, दुर्लभ, अदभुत, अबूझ और अप्रत्याशित कि इसे किसी परिभाषा में बांधना या व्यक्त करना मुमकिन नहीं. यदि ऐसा न होता तो हजारों वर्षों से इस दुनिया में रहते हुए क्या हम यह न जान पाते कि क्या है ज़िंदगी? इतना जरुर है कि ज़िंदगी प्रकृति का बेशकीमती उपहार है, ईश्वर की श्रेष्ठ रचना है, इसलिये अनमोल है, यही वजह है कि तमाम विसंगतियों, विरोधाभासों के बावजूद जीने की चाहत कभी किसी में कम नहीं होती, इसकी कशिश कभी खत्म नहीं होती. नियति पर भले किसी का जोर न हो, लेकिन अपना भविष्य गढ़ने की आज़ादी हर किसी को है, सपने देखने और उन्हें साकार करने की छूट सबको है. तभी तो मकसद और मंजिल से बेखबर, हम सभी अपने-अपने नज़रिये से ज़िंदगी को देखते, समझते, अर्थ देते और जीते हैं. ज़िंदगी शायद ऐसी ही पहेली का नाम है.
ज़िंदगी सौंदर्य है. आनंद, सपना, चुनौती, कर्त्तव्य, संघर्ष, दुर्घटना या फिर जोखिम है, लेकिन है कीमती. और न जाने क्या-क्या है ज़िंदगी. आखिर किस अबूझ पहेली का नाम ज़िंदगी है, जिसे हर कोई अपने हिसाब से परिभाषित करता है. काव्यमय उद्धरणों और जज़्बाती पंक्तियों के साथ आइये कोशिश करते हैं समझने की सही मायने ज़िंदगी के:
कैसी अजीब पहेली है ज़िंदगी…… जब हम खुश होते हैं, तब बहुत प्यारी लगती है ज़िंदगी….. जब हम उदास होते है तब दुख भरी लगती है ज़िंदगी……जब दिल को कोई भा जाए, तब रंगीन बन जाती है ज़िंदगी…… जब मन सोच में डूबा हो, तब समुद्र से भी गहरी हो जाती है ज़िंदगी…… जब कठिनाइयां सामने आएं, तब मुश्किलों से लदी लगती है ज़िंदगी…… जब हौसला अफज़ाई हो, तब प्रेरणा बन जाती है ज़िंदगी…… जब किसी के सामने झुकना पड़े, तब खामोश है ज़िंदगी…. जब बहुत कुछ सहना पड़े, तब लाचार है ज़िंदगी……..जब दिल टूट जाए , तब गमों से घिरी है ज़िंदगी…….जब कुछ समझ न आए, तब घोर अंधेरा है ज़िंदगी…….जब सपने बिखर जाएं, तब आँखों का नम होना है ज़िंदगी……. जब सपने साकार हो जाएं, तब पागलपन है ज़िंदगी……. अपनों के लिये कुछ कर गुज़रने की चाहत है ज़िंदगी या यूँ कहें कि परिस्थिति के सांचे में खुद को ढ़ालना है ज़िंदगी.
शेक्स्पीयर के विचारानुसार, “वी आर सच स्टफ एज ड्रीम्स आर मेड आन एंड अवर लिटिल लाइफ इज़ राउंडेड विद अ स्लीप.” अर्थात हमारी ज़िंदगी नींद जैसी है, जो थोड़े से समय के लिये नींद से घिरी है.
अल्बर्ट आइन्स्टीन के अनुसार, “ज़िंदगी जीने के दो ही रास्ते हैं. एक तो यह कि जैसे कुछ भी चमत्कार नहीं और दूसरा यह कि हर चीज़ चमत्कार है.”
महात्मा गांधी के अनुसार, “जीवन ऐसा जियो, जैसे कि कल ही आप को मर जाना है लेकिन सीखो इस तरह जैसे कि आपको हमेशा के लिये जीवित रहना हो.”
बाइबिल के अनुसार, ‘मानव जीवन इसलिये सुंदर और महत्वपूर्ण है क्योंकि ईश्वर ने इसे अपनी ही छवि में बनाया है.’
ज़िंदगी से शिकायत किस शख्स को नहीं होती, कर दे हर हसरत पूरी, ज़िंदगी की ऐसी फितरत नहीं होती.
ख्वाब तो दिखा देती है ज़िंदगी, पर हर ख्वाब की मंजिल नहीं होती.
तमन्नाएं कुछ ऐसी भी होती हैं, जो कभी हासिल नहीं होती.
किसी ने ज़िंदगी से पूछा, क्यों सबको इतना दर्द देती हो, ज़िंदगी ने हँस के कहा, हम तो सबको खुशी देते हैं
पर किसी की खुशी, किसी और का दर्द बन जाती है.
ज़िंदगी में एक दिन ऐसा भी आता है जब वह आपकी आँखों के सामने रील की तरह घूमती है. बस, इतना ध्यान रखें कि यह देखने के काबिल हो.
असल में, मैं खुद को ज़िंदगी के सही मायने समझने में अक्षम महसूस कर रहा हूँ…… ज़िंदगी के बारे में आप का क्या नज़रिया है? इस प्रश्न के उत्तर की आप सब से अपेक्षा के साथ मैं तो बस यही कहूँगा कि ज़िंदगी एक अनसुलझी पहेली है…… जो बेहद अलबेली है…..मोह-माया के संगम से बनी, खुशियों व गमों से सजी, ज़िंदगी एक जोखिम भरी चुनौती है….ज़िंदगी सिर्फ और सिर्फ एक अबूझ पहेली है…….