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शून्य से…..शिव में   

by On The Dot
March 10, 2021
Reading Time: 1 min read
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शून्य से…..शिव में   

Image Courtesy: Google

फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी को महा शिवरात्रि मनाई जाती है। शास्त्रों के अनुसार, यही वो रात थी जब करोड़ों सूर्यों के समान प्रभाव वाले ज्योतिर्लिंग के रूप में भगवान शिव प्रकट हुए थे। इसी के चलते हर वर्ष फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को महाशिवरात्रि का त्यौहार पूरे विधि-विधान के साथ मनाया जाता है। इसे महारात्रि भी कहा जाता है। इस त्यौहार को शिव के दिव्य अवतरण का मंगल सूचक माना गया है।

भगवान शिव का स्वरूप विराट और अनंत है, उनकी महिमा अपरंपार है। उनमें ही सारी सृष्टि समाई हुई है। हिंदू धर्म में महाशिवरात्रि सबसे बड़े त्योहारों में से एक है। शिवरात्रि वर्ष में दो बार आती है, एक फाल्गुन में तो दूसरी श्रावण मास में। फाल्गुन शिवरात्रि को महाशिवरात्रि कहा जाता है। मान्यता है कि महाशिवरात्रि के दिन ही भगवान शिव और माता पार्वती का विवाह हुआ। यह भी मान्यता है कि इसी दिन भगवान शिव ने समुद्र मंथन से निकले विष को पीया और नीलकंठ कहलाए।

भगवान शिव के गले में जो सांप लिपटा है उनका नाम वासुकी है। भगवान शिव के गले में सर्प तीन बार लिपटे रहता है जो भूत, वर्तमान एवं भविष्य का सूचक है। चंद्रमा को भगवान शिव की जटाओं में रहने का वरदान प्राप्त है। भगवान शिव अर्धचंद्र को आभूषण की तरह अपनी जटा के एक हिस्से में धारण करते हैं। इसलिए उन्हें चंद्रशेखर या सोम कहा गया है। नंदी भगवान शिव के गणों में सबसे ऊपर हैं। नंदी सभी शिव मंदिरों के बाहर विराजमान रहते हैं। भक्त नंदी के कान में अपनी इच्छाओं को कहते हैं ताकि उनकी इच्छा भोलेनाथ तक पहुंच सके। भगवान शिव की उपासना शिवलिंग तथा मूर्ति दोनों रूपों में की जाती है। शिवलिंग भगवान शिव के अस्तित्व का प्रतिनिधित्व करता है। भगवान शिव ने स्वर्ग से दूर हिमालय में अपना घर बनाया। भोले बाबा ने तांडव के बाद चौदह बार डमरू बजाया  जिससे संस्कृत व्याकरण का आधार प्रकट हुआ। भगवान शिव पर केतकी का फूल अर्पित नहीं किया जाता है। बिना जल, बेलपत्र भी नहीं अर्पित किया जा सकता। शिवलिंग पर कभी भी शंख से जल नहीं चढ़ाया जाता, क्योंकि भगवान शिव ने शंखचूड़ को अपने त्रिशूल से भस्म कर दिया था। शंखचूड़ की हड्डियों से ही शंख का निर्माण हुआ था। महाशिवरात्रि जागरण की रात्रि है। इस रात्रि में ऊं नम: शिवाय का जाप करते हुए रात्रि जागरण करा जाता है ।

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यदि हम भौतिकता से थोड़ा आगे जाएं, तो सब कुछ शून्य हो जाता है। शून्य का अर्थ है पूर्ण खालीपन, एक ऐसी स्थिति जहां भौतिक कुछ भी नहीं है। जहां भौतिक कुछ है ही नहीं, वहां आपकी ज्ञानेंद्रियां भी बेकाम की हो जाती हैं। अगर आप शून्य से परे जाएं, तो आपको जो मिलेगा, उसे हम शिव के रूप में जानते हैं। शिव का अर्थ है, जो नहीं है। जो नहीं है, उस तक अगर पहुंच पाएंगे, तो आप देखेंगे कि इसकी प्रकृति भौतिक नहीं है। इसका मतलब है इसका अस्तित्व नहीं है, पर यह धुंधला है,अपारदर्शी है। ऐसा कैसे हो सकता है?  यह आपके तार्किक दिमाग के दायरे में नहीं है। आधुनिक विज्ञान मानता है कि इस पूरी रचना को इंसान के तर्कों  पर खरा उतरना होगा, लेकिन जीवन को देखने का यह बेहद सीमित तरीका है। संपूर्ण सृष्टि मानव बुद्धि के तर्कों पर कभी खरी नहीं उतरेगी। आपका दिमाग इस सृष्टि में फिट हो सकता है, यह सृष्टि आपके दिमाग में कभी फिट नहीं हो सकती। तर्क इस अस्तित्व के केवल उन पहलुओं का विश्लेषण कर सकते हैं, जो भौतिक हैं। एक बार अगर आपने भौतिक पहलुओं को पार कर लिया, तो आपके तर्क पूरी तरह से उसके अधिकार क्षेत्र से बाहर होंगे।

यह अब हमे निर्णय लेना है की हमे भौतिकता के चक्रव्यूह में अभिमन्यु बनना है या शून्य की अनंत यात्रा पर अग्रसर होकर शिव में विलीन होना है?

-आदित्य तिक्कू

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