अंतरराष्ट्रीय ताइक्वांडो खिलाड़ी रोदाली बरुआ (Rodali Barua) ने अनगिनत चुनौतियों, असफलताओं व् अनेकों झंझाओं को मात देते हुए खेल जगत में अपनी सशक्त पहचान स्थापित की है। स्वर्ण की भाँति वे जितना तपीं, उतनी ही ज़्यादा उनकी चमक आज देश-विदेश तक फ़ैली है। छोटी उम्र से ही खुद को ताइक्वांडो के लिए समर्पित कर रोदाली बरुआ ने देश का परचम अंतरराष्ट्रीय स्तर पर फहराने का स्वप्न देखा और उसे यथार्थ में बखूबी तब्दील किया। लोग खिलाड़ी के द्वारा जीते गए मेडल्स की चमक निरखते हैं पर उस मेडल, उपलब्धियों के पीछे मन-मस्तिष्क को झकझोर देने वाली दास्तां को अक्सर अनदेखा करते हैं या उन बाधाओं, तक़लीफ़ों के साथ सहानुभूति तो करते हैं पर समानुभूति नहीं।
बार-बार की असफलता, गंभीर चोटें, संसाधनों की कमी, वित्तीय समस्याएं, लोगों के ताने, मसख़री, कानों के साथ दिल-दिमाग को छिद्रिल कर देने वाली बेतुकी व् घटिया बातें, बार-बार यह अहसास दिलाना कि तुमसे नहीं हो पायेगा, तुम्हारी उम्र हो गयी है, तुम्हारी अब तक की उपलब्धि ही क्या है……आदि कचोटन पैदा करने वाले तंज़ किसी भी शख़्स को इस हद तक तोड़ सकते हैं कि वो अंधकार के गहरे गर्त में समा जाए…..किसी के आत्मविश्वास के चीथड़े उड़ा कर अपनी नपुंसकता का परिचय देना कुछ लोगों के लिए मनोरंजन है…….पर दुनिया में ऐसे विरले लोग भी हैं जो अपने जुनून व् दृढ़ विश्वास के बल पर काँटों के बिछौने पर चल कर भी, गिर कर व् तेज़ी से खुद को संभाल कर अपनी मंज़िल पा ही लेते हैं। ये सिर्फ शब्द नहीं, ये ज़िंदगी की असल कहानी है….कहानी जिसकी नायिका ‘रोदाली बरुआ’ (Rodali Barua) ने संघर्ष को अपना आभूषण और हुनर को अपनी पहचान बना लिया। अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर भारत का गौरव बढ़ाने वाली रोदाली ने ताइक्वांडो में अपनी उपलब्धियों के साथ अपनी ज़िंदगी की चुनौतियों को लात और मुक्के मार कर बखूबी मात दी है जो अनेकों लोगों के लिए प्रेरणा का सबब बन रही हैं।
असम में जन्मीं ताइक्वांडो खिलाड़ी रोदाली बरुआ (Rodali Barua) ने अनेकों स्वर्ण पदक हासिल किये हैं जिसमें दक्षिण एशियाई खेलों से लेकर यूएसए ड्रीम ओपन, इंडिया ओपन इंटरनेशनल, एल-हसन ओपन आदि शामिल हैं। रोदाली वर्ल्ड रैंकिंग में भी अपना प्रभुत्व दिखा चुकी हैं। छोटी उम्र में ही ताइक्वांडो का अभ्यास शुरू कर देने वाली इस प्रतिभावान खिलाड़ी ने 8वीं कक्षा से ही ताइक्वांडो चैंपियनशिप्स में भाग लेना शुरू कर दिया था। अगस्त 2017 में रोदाली ने विश्व ग्रीष्मकालीन विश्वविद्यालय खेलों में चीन के ताइपे में भारत का प्रतिनिधित्व किया। रोदाली 2018 में जकार्ता में हुए एशियाई खेलों में भी भारत का प्रतिनिधित्व कर चुकी हैं।
‘ऑन द डॉट’ (On the Dot) के कार्यकारी सम्पादक ऋषभ शुक्ल से एक्सक्ल्यूसिव बातचीत के दौरान रोदाली बरुआ ने अपने अब तक के सफ़र पर प्रकाश डालते हुए कहा, “मेरे स्कूल डेज़ के दैरान ही मेरा SAI गुवाहाटी में चयन हो गया था। SAI में प्रवेश करने के बाद, मैंने आगे बढ़ना जारी रखा। हमारे विद्यालय में खेल को पाठ्येतर गतिविधि के रूप में लेना अनिवार्य था। इसलिए मैंने अपने दोस्तों के साथ ताइक्वांडो का अभ्यास शुरू किया और आखिरकार, मुझे इस खेल से प्यार हो गया। मेरे मुख्य कोच तमस सेठी मेरे सबसे बड़े प्रेरक रहे हैं। वर्तमान समय में मैं, बेंगलुरु स्थित सेंटर ऑफ एक्सीलेंस से जुड़ी हूँ जहां गौतम सिंह विरदी सर मुझे प्रशिक्षण दे रहे हैं। मेरे परिवार ने मेरे हर निर्णय में मेरा साथ दिया है बजाय इसके कि परिवार की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं फिर भी मेरे पिता हमेशा चाहते थे कि मैं एक अच्छी खिलाड़ी बनूं और भारत का नाम रोशन करूँ।”
“मैंने 2016 में राष्ट्रीय स्तर पर अपना पहला कांस्य पदक जीता था। अगले साल मेरा प्रदर्शन चरम पर पहुंच गया, जब मैंने 2017 से 2019 तक राष्ट्रीय और विश्वविद्यालय खेलों में लगातार तीन साल तक स्वर्ण पदक जीते। 2019 में, मैंने इटली में वर्ल्ड यूनिवर्सिटी गेम्स में भाग लिया। जॉर्डन ओपन इंटरनेशनल में फिर से, मैंने दो स्वर्ण पदक और एक कांस्य जीता। मैंने 2018 एशियाई खेलों में भाग लिया। हालाँकि, मेरी अब तक की सबसे बड़ी उपलब्धि 2019 में दक्षिण एशियाई खेल थी जहाँ मैंने स्वर्ण पदक जीता था। इतने बड़े मंच पर अपने देश के लिए पदक जीतना मेरे लिए गर्व का क्षण था। अपने देश के लिए स्वर्ण पदक प्राप्त कर, पोडियम पर खड़े होना और वो राष्ट्रगान की धुन, आज भी मुझे भाव विभोर करती है।”
“एकमात्र टूर्नामेंट जो मैं 2020 में खेल सकती थी वह दुबई में फुजैरा ओपन रैंकिंग टूर्नामेंट था, जहां मैंने कांस्य पदक जीता। लॉकडाउन के दौरान सभी खिलाड़ियों को उनके घर भेज दिया गया था लेकिन मैंने SAI बेंगलुरु में रह कर अपना अभ्यास जारी रखा। उस वक़्त मैं SAI में एकमात्र ताइक्वांडो खिलाड़ी थी जिसके फलस्वरूप मुझे उन सत्रों में अपनी कमियों को दूर करने का अवसर प्राप्त हुआ।”
रोदाली ने बताया, “कोरोना महामारी के चलते एक बार पुनः नयी चुनौतियाँ मेरे सामने दस्तक दे रही हैं। कोविड-19 की चपेट में आने से कई सुनहरे अवसर मेरे हाथ से निकल गये जिसके चलते मेरी रैंकिंग काफी हद तक प्रभावित हुई। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर खेलने के लिए किसी भी प्रकार की कोई वित्तीय सहायता प्राप्त नहीं हो रही पर मेरा हौसला अभी भी मजबूत है। मैं कठोर परिश्रम में यकीन करती हूँ, किस्मत पर नहीं और मुझे खुद पर पूरा विश्वास है कि खेल हो या ज़िंदगी के संघर्ष, मैं उनमें भी स्वर्ण की भाँति तपते हुए स्वर्ण पदक अर्जित करती रहूंगी।”