आदित्य तिक्कू।।
संकुचित दूषित मानसिकता से ग्रस्त विदेशी मीडिया हमारे देश के अस्पताल, श्मशान घाट, जलती चिताएं, लाशों की कतार और ऑक्सीजन के लिए संघर्ष करते मरीजों की तस्वीरें विदेशी अखबारों के पहले पन्ने पर छाप रही हैं।कई चैनल. हमारे देश के अस्पतालों में जाकर मरीजों का हाल दुनिया को बता रहे हैं। यह मीडिया का कर्तव्य है कि वो इस तरह के संकट में भी कवरेज करे और हालात के बारे में लोगों को बताए लेकिन विचारणीय यह है कि जब इस से भी ज्यादा करुणामयी स्थिति अमेरिका, ब्रिटेन और यूरोप के देशों की थी, तब इन चैनलों की रिपोर्टिंग टीम वहां के अस्पतालों में क्यों नहीं गई और क्यों तब इन्होंने अपने देश के ICU वार्ड का हाल लोगों को नहीं बताया? तब क्यों नहीं दिखाई 2- 2 किलोमीटर लम्बी लाइन जो लग रही थी खाने के लिए? जब कब्रिस्तान में जगह नहीं बची थी और एक एक कब्र में सेकड़ो को दफनाया जा रहा था तब ये कहा थे? सोचिये …….
एक सेकंड के लिए अतीत की एक दुर्घटना का उल्लेख करता हू ……. जी नहीं आप के समझने में आसानी होगी इसलिए नहीं बल्कि अपनी बात सहजता से लिख पाऊंगा इसलिए…….अमेरिका में जब 11 सितम्बर 2001 को World Trade Center पर इस्लामिक आतंकवादी हमला हुआ था तब अंतरराष्ट्रीय मीडिया ने मृतकों की तस्वीरें नहीं छापी थीं। जब की इस हमले में तक़रीबन 2,977 लोगो की जान गयी थी और 6,000 से अधिक अन्य घायल हो गए थे। तब अंतरराष्ट्रीय मीडिया का मानना था कि इससे मृतकों के परिवारों को ठेस पहुंचेगी और ये उनकी गरिमा को भी भंग करेगा। यही तर्क पश्चिमी मीडिया के कई अखबारों और चैनलों का तब था जब उनके देशों में कोरोना वायरस से हर दिन हजारों मौतें हो रही थीं। उस समय भी मरने वाले लोगों के अंतिम संस्कार की तस्वीरें अखबारों में नहीं छापी गईं। इन देशों में सैनिकों के शवों को भी नहीं दिखाया गया। परन्तु जब बात हमारे देश की आई तो ये सारे अखबार और चैनल गिद्ध की तरह हम पर टूट पड़े।भारत में जलती चिताओं की तस्वीरें इन अखबारों के पहले पन्ने पर छापी गईं। कई अंतरराष्ट्रीय मैगजीन्स के कवर पेज पर लाशों की तस्वीरों को प्रकाशित किया गया।इसके अलावा हमारे देश में कोरोना से मरते लोगों को विदेशी मीडिया ने मजाक बना कर रख दिया।महत्वपूर्ण बात ये है कि पश्चिमी देशों में हिन्दू रीति रिवाज से अंतिम संस्कार की क्रिया को कौतूहल से देखते हैं।उनमें हमेशा जिज्ञासा बनी रहती है और इसी जिज्ञासा को शांत करने के लिए इस तरह की तस्वीरें दिखाते हैं।यानी पश्चिमी मीडिया अपने लोगों की उत्सुकता को शांत करने के लिए जलती हुई चिताओं की तस्वीरें दिखाता रहा है और कई उपन्यासों में भी इसका उल्लेख किया है। अफ़सोस ऐसा करते हुए पश्चिमी देशों का मीडिया ये भूल जाता है कि अंतिम संस्कार की क्रिया किसी भी परिवार के लिए बहुत ही निजी और कठिन पल होता है।इसलिए इन तस्वीरों से अपने लोगों की उत्सुकता को शांत करना कभी भी जायज नहीं हो सकता।पश्चिमी मीडिया को ये समझना चाहिए कि जो गरिमा और सम्मान वो अपने लोगों को मरने के बाद देते हैं, वैसे ही सम्मान हमारे देश के लोगों को भी मिलना चाहिए।
एक बात और कहना चाहते हूँ कि यूरोप में कुल देशों की संख्या 48 है। इन देशों में कोरोना के कुल मरीजों की संख्या लगभग साढ़े चार करोड़ है और 10 लाख लोग इस वायरस से मर चुके हैं। अगर हम इन सभी देशों की आबादी को जोड़ भी दें तो यह आंकड़ा लगभग 75 करोड़ होता है। अगर हम इसमें उत्तरी अमेरिका के 39 देशों की कुल आबादी को भी जोड़ दें तो ये आंकड़ा 134 करोड़ के आसपास होता है यानी एक तरफ ये 87 देश हैं और दूसरी तरफ अकेला भारत है। आप कह सकते हैं कि भारत में 87 देशों की आबादी बसती है। लेकिन इसके बावजूद हमारे देश के हालात इन देशों से काफी बेहतर हैं।जहां इन 87 देशों में कोरोना मरीजों की संख्या 8 करोड़ है तो भारत में ये आंकड़ा लगभग 2 करोड़ 27 लाख है। इसके बावजूद इन देशों का मीडिया हमारे देश को बदनाम करता है और हमारे लोगों की जलती चिताओं पर हाथ सेंकता है।
इसलिए नम्र निवेदन है इस संकट के समय राष्ट्र के साथ खड़े होइए। जो गलत है उस के लिए बोलिये, सरकार पर प्रश्नो की बौछार करिये क्योकि हमने प्रधान सेवक चुना है इसलिए हमारा हक़ है परन्तु हक़ के नाम पर कुछ भी ना बोलिये, अफवाह ना फैलाइये और ना ही किसी की सांसो और आसुओ का लुफ़्त लीजिये। स्वतः रहिये विदेशी मीडिया से सजग रहिये।