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लोकतंत्र के मंदिर के लिए वो काला दिन

by On The Dot
December 13, 2020
Reading Time: 1 min read
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लोकतंत्र के मंदिर के लिए वो काला दिन

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19 वर्ष हो गये लोकतंत्र के मंदिर पर हमले को और वह आतंकी देश आज भी विश्व मानचित्र पर विधमान है। आज ही के दिन 13 दिसंबर, संसद में विंटर सेशन चल रहा था पर “महिला आरक्षण बिल” पर हंगामे के कारण संसद को स्थगित कर दिया गया। उस समय के प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी और विपक्ष की नेता सोनिया गांधी संसद से जा चुके थे। तब के उपराष्ट्रपति कृष्णकांत का काफिला भी निकलने ही वाला था। संसद स्थगित होने के बाद गेट नंबर 12 पर सफेद गाड़ियों का तांता लग गया। इस वक्त तक सब कुछ सामान्य था, लेकिन चंद पलो में संसद पर जो हुआ, उसके बारे में न कभी किसी भारतीय ने सोचा था और न ही कल्पना की थी। तक़रीबन साढ़े ग्यारह बजे उपराष्ट्रपति के सिक्योरिटी गार्ड उनके बाहर आने का इंतजार कर रहे थे और तभी सफेद एंबेसडर में सवार जैश-ए-मोहम्मद के 5 आतंकी गेट नंबर-12 से संसद के अंदर घुस गए। उस समय सिक्योरिटी गार्ड निहत्थे हुआ करते थे। जी हाँ, संसद के सिक्योरिटी गार्ड निहत्थे। वीर-निडर निहत्थे सिक्योरिटी गार्डस ने एंबेसडर कार के पीछे दौड़ लगा दी। तभी जांबाजों की फुर्ती व बहादुरी देख आतंकियों को काल दिखने लगा और घबराये अमानवीयो की कार  उपराष्ट्रपति की कार से टकरा गई। घबराकर आतंकियों ने अंधाधुंध फायरिंग शुरू कर दी। आतंकियों के पास एके-47 और हैंडग्रेनेड थे, जबकि सिक्योरिटी गार्डस ने निहत्थे ही उन कायरों से लोहा भी लिया व उन्हें संसद में घुसने से रोकने में भी सफल हुए।संसद भवन में अक्सर CRPF की एक बटालियन मौजूद रहती है। गोलियों की आवाज़ सुनकर ये बटालियन अलर्ट हो गई। CRPF के जवान दौड़-भागकर आए। उस वक्त सदन में  लालकृष्ण आडवाणी करीब 200 संसद सदस्यों के साथ संसद परिसर में ही मौजूद थे । सभी को संसद के अंदर ही सुरक्षित रहने को कहा गया। इस बीच एक आतंकी ने गेट नंबर-1 से सदन में घुसने की कोशिश की, लेकिन सिक्योरिटी फोर्सेस ने उसे वहीं मार गिराया। इसके बाद उसके शरीर पर लगे बम भी ब्लास्ट हो गये। बाकी के 4 आतंकियों ने गेट नंबर-4 से सदन में घुसने की कोशिश की, लेकिन इनमें से 3 आतंकियों को वहीं पर मार दिया गया। इसके बाद बचे हुए आखिरी आतंकी ने गेट नंबर-5 की तरफ दौड़ लगाई, लेकिन वो भी जवानों की गोली का शिकार हो गया। जवानों और आतंकियों के बीच 11:30 बजे शुरू हुई ये मुठभेड़ शाम को 4 बजे खत्म हुई | संसद में गूंजी गोलियां आज भी हर भारतीय को सुनाई देती हैं और साथ ही आंतकवाद को जड़ से उखाड़ फेंकने के लिए हर पल प्रेरित  करती है।

-आदित्य तिक्कू

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