सूर्य सृष्टि का आधार है और सूर्य के एक राशि से दूसरे राशि में जाने को संक्रांति कहते है | यह पर्व सूर्य के धनु राशि से मकर राशि में प्रवेश के समय मनाया जाता है इसलिए इसे मकर संक्रांति कहा जाता है | इस दिन से सूर्य उत्तर की ओर चलते है इसलिए इसे उत्तरायण भी कहा जाता है | यह दिन शीत ऋतु के समापन का सूचक है |
मान्यता है की सूर्य का मकर राशि में प्रवेश अति शुभ होता है | जहाँ अन्य सभी हिन्दू त्योहारों का आधार चन्द्रमा की गति पर आधारित तिथियों से होता है, मकर संक्रांति का समय सूर्य की चाल निश्चित करती है | पिछले कई दशकों से यह १४ या १५ जनवरी के दिन पड़ रहा है | इस दिन से पौष माह में रुके हुए सभी शुभ कार्यों की शुरुआत हो जाती है |
मकर संक्रांति सम्पूर्ण भारत में मनाया जाने वाला एक मुख्य त्यौहार है | भारत के विभिन्न प्रांतों में इसे भिन्न-भिन्न नामों से जाना जाता है और मनाने का ढंग भी सब का अपना-अपना है | बीहू, पोंगल, माघी सक्रांति, खिचड़ी पर्व सब इसी त्यौहार के नाम है | नाम या तरीका जो भी हो, उद्देश्य सभी का एक है, भगवान सूर्य और जगत के संचालक श्री हरी विष्णु की उपासना, उनके प्रति अपना आभार प्रकट करना तथा उनसे संसार के सुखद भविष्य के लिए प्रार्थना करना | यदि, घर में कोई नव विवाह हुआ है या किसी बालक/बालिका का जन्म हुआ हो तो इस त्यौहार को मनाने की ख़ुशी और उत्साह देखते ही बनता है |
सूर्य की दिशा बदलने के कारण, यह दिन शीत ऋतु के समापन का सूचक है | किसानों के लिए यह अति महत्वपूर्ण है | अब से नई फसल की बुआई की शुरुआत होती है और काटी हुई फसल के लिए भगवान को धन्यवाद दिया जाता है | भगवान की कृपा से जो भी प्राप्त हुआ है, उसमें से ब्राह्मणों और जरूरतमंद लोगों को दान दिया जाता है | इस ख़ुशी को अपनो को सम्मानपूर्वक अन्न, मिठाई, वस्त्र आदि देकर भी मनाया जाता है | गुजरात और अन्य राज्यों में इस दिन को पतंग उड़ा कर भी मनाया जाता है |
मकर संक्रांति पर पवित्र नदियों में स्नान का विशेष महत्व है किन्तु गंगा स्नान को सर्वोच्च माना गया है | इसी दिन राजा भगीरथ की अगुवाई में माँ गंगा सागर में जा मिली थी, वह स्थान गंगा सागर कहलाया जो आज के बंगाल में स्थित है | महा कुम्भ भी शुरुआत भी मकर संक्रांति से ही होती है | इस दिन के कुंभ स्नान योग को बहुत मंगलकारी माना गया है, मान्यता है की इस पावन दिवस पर स्वर्ग लोक और वैकुंठ लोक के द्वार खुले होते है | इस दिन श्रद्धा पूर्वक गंगा स्नान से जन्मो के पाप धुल जाते है और परमलोक की प्राप्ति होती है | गंगा के जल में स्नान के उपरान्त पितरों का तर्पण करने से उन्हें भी शांति और मुक्ति मिलती है |
पितामह भीष्म जिन्हें इच्छा मृत्यु का वरदान प्राप्त था, असहनीय कष्ट भोगते हुए, प्राण त्यागने के लिए गंगा किनारे, सूर्य के उत्तरायण होने की प्रतीक्षा की थी, जिसके फलस्वरूप उन्हें भगवान श्री कृष्ण ने अंतिम समय में अपने चतुर्भुज रूप का साक्षात्कार कराया और उन्हें वैकुंठ लोक प्राप्त हुआ |
गंगा स्नान के पश्चात, सूर्य को अर्घ्य देना चाहिए और फिर दान देना चाहिए | नदी की स्वच्छता का भी ध्यान रखे, तभी भगवान की पुजा-अर्चना मान्य होगी। इस दिन काले तिल, गुड़, इनसे बनी वस्तुएं, खिचड़ी, घी और नमक के दान विशेष महत्व है | सुहागन स्त्रियाँ सुहाग सूचक वस्तुएं भी १४ की संख्या में सुहागन स्त्रियों और ब्राह्मणी को दान में देती है | शीत ऋतु से बचाने वाली वस्तुए जैसे कम्बल, शॉल, जुते, मोज़े, ऊनी वस्त्र आदि का दान भी उत्तम माना जाता है | मकर संक्रांति के दिन किया हुआ स्नान, दान, जप, यज्ञ, श्राद्ध, तर्पण आदि का फल कई गुना होकर आपको मिलता है और अनंत काल तक आपके साथ रहता है |