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प्रधान सेवक प्रधानमंत्री जी बनने की ओर

by On The Dot
November 21, 2021
Reading Time: 1 min read
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PM Narendra Modi announces withdrawal of farm laws

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आदित्य तिक्कू।।

प्रधानसेवक ने 1 साल 1 महीना और 23 दिनों के बाद तीनों कृषि कानूनों को रद्द करने का ऐलान कर दिया।  ये कानून 27 सितम्बर 2020 को लागू हुए थे और इसके तहत कृषि क्षेत्र में अब तक के सबसे बड़े सुधार किए गए थे।   लेकिन किसान आन्दोलन की वजह से आज प्रधानसेवक ने ये ऐलान किया कि सरकार 29 नवम्बर से शुरू हो रहे संसद के शीत सत्र में इन कानूनों को रद्द करने की संवैधानिक प्रक्रिया शुरू कर देगी।  प्रधानसेवक ने दो बड़ी बातें कहीं। पहली ये कि वो देश के लोगों से क्षमा मांगते हैं । सच्चे मन से और पवित्र ह्रदय से कहना चाहते हैं कि उनकी तपस्या में ही कोई कमी रही होगी, जिसके कारण दीये के प्रकाश जैसे सत्य वो कुछ किसानों को समझा नहीं पाए। दूसरी बात उन्होंने ये कही कि इन कृषि कानूनों का विरोध किसानों का एक वर्ग ही कर रहा था।लेकिन सरकार के लिए ये वर्ग भी महत्वपूर्ण था इसलिए कृषि कानूनों के जिन प्रावधानों को लेकर उन्हें ऐतराज था, सरकार उन्हें बदलने के लिए तैयार थी। इन कानूनों को दो साल तक होल्ड पर रखने का भी प्रस्ताव दिया गया था।लेकिन किसानों ने इसे भी स्वीकार नहीं किया।

प्रधानसेवक ने जैसे कहा यह तीनों कृषि कानून दीये के प्रकाश जैसे सत्य है तो फिर प्रक्शा पूर्ण रहा पर उन्होंने अग्रसर करना क्यों नहीं स्वीकार करा या प्रकाश राजनीती की भेट चढ़गया? बहुत सारे लोग इसे प्रधानमंत्री  का मास्टर स्ट्रोक कह रहे हैं, बहुत सारे लोग इसे किसानों की जीत कह रहे हैं, विपक्षी दल इसे अपनी जीत मान रहे हैं, खालिस्तानी इसे अपनी जीत मान रहे हैं और देश का टुकड़े टुकड़े गैंग भी आज तालियां बजा रहा है।

वास्तविकता और सच्चाई यह है की राजनीतिक वजहों से  ही तीनों कृषि कानूनों को वापस लेने का फैसला किया गया है और आम धारणा भी यही बनी है कि आने वाले विधानसभा चुनावों में किसान आंदोलन के पड़ने वाले असर को देखते हुए सरकार ने अपने कदम पीछे खींचे हैं। पंजाब में बेशक भाजपा का सीधे तौर पर बहुत कुछ दांव पर नहीं है, लेकिन उत्तर प्रदेश उसके लिए काफी अहमियत रखता है। यहां विशेषकर पश्चिमी हिस्से में किसान आंदोलन खासा असरंदाज है।

हालांकि, कई अच्छे प्रावधानों के बावजूद इन कृषि कानूनों में कुछ खामियां थीं। इनमें खेती-किसानी के नियम समान रूप में देश भर में लागू करने की वकालत की गई थी, जबकि अलग-अलग इलाकों में किसानों की अलग-अलग समस्याएं हैं। पंजाब, हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश में न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) जरूरी है, तो महाराष्ट्र और गुजरात में बाजार महत्वपूर्ण हैं। मगर ये कानून एमएसपी को खत्म कर रहे थे और ऑनलाइन कारोबार को बढ़ावा दे रहे थे, जिसकी अपनी मुश्किलें हैं।प्रधानसेवक प्रधानमंत्री जी बनने की ओर की यही वजह है कि कानून वापसी को पूरे देश के किसानों की जीत नहीं कह सकते। क्षेत्रवार किसानों की अलग-अलग जरूरतें हैं। इतना ही नहीं, सुधार की प्रक्रिया धीमी गति से आगे बढ़ती है, इसे छड़ी से नहीं हांका जा सकता, जबकि इन कानूनों को संभवत: जोर-जबर्दस्ती से लागू करने की कोशिश की गई। यहां तक कि संसद में एक दिन में ही बिना किसी बहस से इनको पारित करा लिया गया। साथ ही यह भी स्पष्ट कर दूँ जनता को प्रधानसेवक का काम काज का यही ढंग पसंद है।

इससे अधिक दुर्भाग्य की बात और कोई नहीं कि जो फैसला किसानों के हित में था और जिससे उनकी तमाम समस्याएं दूर हो सकती थीं, उसे संकीर्ण राजनीतिक कारणों से उन दलों ने भी किसान विरोधी करार दिया, जो एक समय वैसे ही कृषि कानूनों की पैरवी कर रहे थे, जैसे मोदी सरकार ने बनाए। यह शुभ संकेत नहीं है की संसद से पारित कानून सड़क पर उतरे लोगों की जिद से वापस होने जा रहे हैं। यह सुनिश्चित करने की जरूरत है कि भविष्य में ऐसा न हो, अन्यथा उन तत्वों का दुस्साहस ही बढ़ेगा, जो मनमानी मांगें लेकर सड़क पर आ जाते हैं। इससे इसी तरह की सड़क छाप राजनीति की जीत हो गई है और जो लोग भारत के समाज का ही भारत के खिलाफ इस्तेमाल करना जानते हैं, उनकी भी जीत हो गई है और सुधार की राजनीति हार गई है।
यह कदम गलत लिया गया है। आप विकास के साथ राजनीती करेंगे सोचा नहीं था, हम आप को अपना प्रधानसेवक समझते रहे और आप प्रधानमंत्री जी बन गए। जल्दी कई राजनेता – समाज सेवक – क्रांति करतनि करते नज़र आयेगा;

* कश्मीर में अनुच्छेद 370 को फिर से बहाल करने की मांग करेगा, अब उसे ऐसा लगेगा कि अगर वो भी सड़कों को बन्द करके बैठ जाए और केन्द्र सरकार पर दबाव बनाए तो कश्मीर में पुरानी व्यवस्था लौट सकती है।
*  उन्हें भी हौसला मिलेगा जो लोग पिछले वर्ष तक दिल्ली के शाहीन बाग़ में नागरिकता संशोधन क़ानून के ख़िलाफ़ आन्दोलन पर बैठे थे, हो सकता है वो लोग फिर से इकट्ठा हो जाएं. क्योंकि इससे उनकी भी उम्मीद जागी होगी कि CAA को भी रद्द कराया जा सकता है।
* एक देश, एक टैक्स के सिद्धांत का विरोध करने वाले लोग अब ये सोच रहे होंगे कि वो GST कानून को समाप्त करा सकते हैं।
अर्थात देश की संसद द्वारा बनाए गए हर उस क़ानून का विरोध होगा, जिसे हमारे देश का एक ख़ास वर्ग पसन्द नहीं करता। विश्व के किसी भी देश में जब आम लोगों के बीच ये धारणा बन जाए कि कुछ लोगों का समूह सरकार पर दबाव बना कर उसके बनाए कानून को खत्म करा सकता है, तो उस देश में सरकार द्वारा बनाए गए कानून का महत्व और उनकी शक्ति कम हो जाती है। मुझे लगता है कि आज के फैसले से भविष्य में लोकतंत्र का ज़बरदस्त दुरुपयोग होगा।

Tags: #aDITYa_TIKKU#Article#FarmerAditya TikkuBillPM Modi
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