‘भरतनाट्यम’, आठ भारतीय शास्त्रीय नृत्यों में से एक है I यह केवल दक्षिण भारत ही नहीं अपितु उत्तर भारत में भी एक लोकप्रिय शास्त्रीय नृत्य हैI भरतनाट्यम नृत्य के विशिष्ट क्षेत्र में जहाँ अनेकों नृत्यांगनाएं एवं नर्तक अपनी सफल भागीदारी दर्ज करा रहे हैं वहीं एक नाम , सूर्य के प्रकाश की भाँति उभर कर सामने आता है, जिन्होंने अपनी प्रतिभा के बल पर भरतनाट्यम नृत्य के रुप में भारतीय संस्कृति की अनमोल विरासत को संजो कर रखा है और इसे बढ़ावा व प्रोत्साहन देने के लिए अनेकों कार्य भी किए हैं I हम बात कर रहे हैं, अद्वितीय प्रतिभा की धनी भरतनाट्यम नृत्यांगना ‘अनघा जोशी’ कीI
कला व कलाकार रंग, वर्ण, लिंग, जाति, धर्म आदि से ऊपर होता है व इन सभी शब्दों से परे अपनी कला के क्षेत्र में लीन रहता है I कला किसी भी रुप में हो, चाहे संगीत कला, चित्र कला या नृत्य कला, एक कलाकार अपनी कला की साधना कर, उसमें लीन होकर ईश्वर से जुड़ जाता है जिसके परिणामस्वरुप वह मानव दुनिया की संकीर्ण मानसिकता से परे अपना अतुलनीय मुकाम बनाता हैI
अनघा जोशी के नृत्य में इनके हाथों का संतुलित घुमाव, पद संचालन, अंग आदि के बेमिसाल प्रदर्शन द्वारा इनके अपार कौशल का परिचय स्वत: ही मिल जाता है I दर्शक गण उनके लाजवाब एवं सौंदर्यपरक भावों व अंदाज़ को देख, इनकी नृत्य कला के सम्मोहन में बँधते चले जाते हैं I यह इनकी प्रभावशाली व बेहतरीन नृत्य कला का ही कमाल है कि भरतनाट्यम जैसे जटिल नृत्य को अनघा जिस सहजता से पेश करती हैं, उससे भरतनाटयम नृत्य के क्षेत्र में उनकी गहरी तालीम उजागर होती है I जिस खूबसूरती व सहजता से अनघा जोशी अपने नृत्य में अंग संचालन, पाद-विक्षेप, नेत्र एवं भौं संचालन का समावेश करती हैं, वह इनके नृत्य को अपार सौंदर्य से भर अत्यंत प्रभावशाली, अतुलनीय, आकर्षक व मनमोहक बनाता हैI
अनघा जोशी की पारिवारिक पृष्ठभूमि कला क्षेत्र से संबंधित नहीं, इस कारण उन्हें भरतनाट्यम नृत्य के क्षेत्र में अपनी पहचान स्थापित करने के लिए काफी संघर्षों का सामना करना पड़ा I परंतु कहा जाता है कि जहाँ चाह है, वहाँ राह है और इसका ज्वलंत उदाहरण हैं अनघा जोशीI
सॉफ्ट्वेयर इंजीनियर के पद पर कार्यरत अनघा, भरतनाटयम नृत्यांगना व शिक्षिका के रुप में भी भारतीय शास्त्रीय नृत्य कला के क्षेत्र में अपनी सफल भागीदारी दर्ज करा रही हैंI
अनघा का कहना है कि आधुनिक परिवेश में लोगों की शास्त्रीय नृत्य कला के क्षेत्र में उदासीनता देखने को मिलती है, जो सही नहीं है I शास्त्रीय नृत्य न सिर्फ आपके व्यक्तित्व को निखारता है, बल्कि भारतीय संस्कृति से हमें जोड़े भी रखता हैI शास्त्रीय नृत्य के रुप में भारत की अनमोल विरासत को जीवंत रखने हेतु अनघा पुणे में ‘कलाधारा नृत्यालय’ नामक एक संस्थान चला रही हैं I कलाधारा नृत्यालय, उन सभी कला प्रेमियों के लिए खुला है जो हमारी परंपराओं व हमारे गौरवशाली इतिहास को दर्शाती शास्त्रीय नृत्य कला को सीखने व आत्मसात करने के इच्छुक हैंI
इसके अतिरिक्त अनघा नाट्यशास्त्र को मराठी भाषा में उपलब्ध कराने हेतु प्रयासरत हैंI अनघा के अनुसार नाट्यशास्त्र अभी कुछ क्षेत्रीय भाषाओं में ही उपलब्ध है I संस्कृत व अंग्रेज़ी भाषा में उपलब्ध इसकी कृतियां हर किसी की समझ से परे हैं I नाट्यशास्त्र एक अनमोल ग्रंथ है I अत: इसका मराठी भाषा में प्रकाशन मराठी भाषा के जानकारों के लिए फुहार की भांति होगाI
भरतनाटयम नृत्य के क्षेत्र में अपने बेमिसाल प्रदर्शन के कारण अनघा ‘नंद्कुमार नृत्य रत्न अवार्ड’, ‘नाटयश्री पुरस्कार’, ‘तरंग पद्म अवार्ड’ आदि जैसे अनेकों पुरस्कार व सम्मान प्राप्त कर चुकी हैंI
अनघा, नृत्य के क्षेत्र में अपने अब तक के शानदार सफ़र का श्रेय अपनी गुरु, आविष्कार नृत्य विद्यालय, पुणे की संस्थापक -निदेशक श्रीमती रचना (ताई) कापसे को देती हैं I अनघा का कहना है कि 16 वर्षों में उनकी गुरु से उन्होंने न सिर्फ शास्त्रीय नृत्य की बारीकियां सीखी बल्कि भारतीय संस्कृति, परंपराओं व हमारी विरासत को खूबसूरती से संजोने का हुनर भी सीखा हैI
अपनी गुरु के बारे में अनघा का कहना है, “रचना ताई के साथ अपने सफर को याद करती हूँ तो पाती हूँ कि उन्होंने मेरी पूरी ज़िंदगी बदल दी, उन्होंने मुझे न सिर्फ नृत्य की बारीकियों से अवगत कराया बल्कि जीवन का नज़रिया, हमारे कर्म, हमारी ज़िम्मेदारियों और दूसरों को सम्मान देने की अनमोल कला का भी मुझे उपहार दिया I अपनी गुरु से मुझे वो सकारात्मक ऊर्जा प्राप्त होती है जिससे मुझे मेरे स्वप्नों को हकीकत में तब्दील करने की प्रेरणा मिलती है I मेरी गुरु मेरी प्रेरणा हैं I उन्होंने मुझे माँ का प्यार दिया I रचना ताई में मैं, अपनी गुरु, अपनी माँ, अपनी दोस्त और अपनी प्रेरणा को देखती हूँ I शुक्रिया बहुत छोटा शब्द है फिर भी यदि न बोला तो बेइमानी होगी…रचना ताई! आपका बहुत-बहुत शुक्रियाI”
वाकई, जहाँ आज के आधुनिक समय में शिक्षा, विद्यालयों आदि के स्तर में गिरावट आने के साथ- साथ, गुरु के पद पर आसीन शिक्षकों ने भी शिक्षा का व्यापारीकरण कर डाला है, जो बेहद शर्मसार कर देने वाला काला सच है वहीं ‘अनघा जोशी’ का अपनी गुरु रचना जी के लिए सम्मान सराहनीय है और रचना ताई का अनघा के प्रति प्रेम व समर्पण, गुरु-शिष्य की अनुपम मिसाल बनकर सामने आता हैI गुरु-शिष्य के मध्य किस प्रकार का सम्मान, प्रेम व समर्पण होना चाहिये, प्रत्येक व्यक्ति को अनघा व रचना कापसे जी से इसकी प्रेरणा लेनी चाहियेI
भरतनाट्यम नृत्यांगना अनघा जोशी ने नृत्य कला को अपने व्यक्तित्व में इस प्रकार समा लिया है कि वे नृत्य की एक बेहतरीन व प्रतिभावान पर्याय बन गई हैं I
इसलिए यदि अनघा जोशी को लावण्य, सौंदर्य और बेमिसाल प्रतिभा का दूसरा नाम कहा जाए तो यह हर सूरतेहाल में बिल्कुल उपयुक्त होगाI