‘दंड’ को न्याय का पर्यायवाची कहना अनुपयुक्त न होगा. दंड ही न्याय है. प्राचीन काल में राजा-महाराजाओं के यह विचार हुआ करते थे कि प्रजा दंड से ही वश में रहती है. राज्य में दंड व्यवस्था न रहने पर बड़े लोग छोटों को लूट्कर खाने लगते हैं, उन पर अत्याचार करते हैं. यदि आपकी दंड नीति ढीली होगी, यदि आप राष्ट्रीय अपराध करने वाले शत्रुओं के अपराधों की उपेक्षा कर रहे होगे, तो आपके शत्रु प्रबल हो जाएंगे और उन्हें आपके विरुद्ध खुलकर खेलने का अवसर मिल जाएगा. आज के समय में भी ‘दंड नीति’ की महत्ता को नज़रअंदाज नहीं किया जा सकता. किसी राष्ट्र के सख़्त कानून व संविधान के आधार पर विभिन्न अपराधों, गैर कानूनी व अनैतिक कार्यों में लगाम कसी जा सकती है. पर कुछ अपराध ऐसे होते हैं जिन्हें पाप कहते हैं …. पापी मनुष्य न किसी कानून से डरता है न किसी संविधान से…. पापी मनुष्य न ही धर्म को मानता है न ही ईश्वर को…….. फिर भी, दूसरों पर अन्याय करने वालों को कभी न कभी, किसी न किसी रुप में परोक्ष अथवा अपरोक्ष रुप में उनके काले कारनामों व अधर्मों के लिए दंड जरुर मिलता है ….. यही प्रकृति का नियम है, जो बोया है वही काटोगे.
सड़क पर कुछ देर पहले हुए एक दिल दहला देने वाले हादसे की चर्चा हो रही थी कि ……उस लड़के ने लड़की पर एसिड क्यों फेंका? कुछ लोगों ने कहा लगता है कि कुछ चक्कर (प्रेम प्रसंग) चल रहा था, बाद में कुछ कहा सुनी हो गई होगी…अब आजकल के लड़के हैं, आ गया होगा क्रोध तो लड़के ने फेंक दिया होगा ‘एसिड’ … दूसरे व्यक्ति ने कहा कि लड़की की हालत बहुत गंभीर है, देखो बचती भी है कि…………………
अन्य व्यक्ति ने कहा, “अरे! अब बच भी गई तो क्या ज़िंदगी होगी… ऐसी ज़िंदगी से तो बेचारी को मौत ही नसीब हो, अब मौत ही उसके लिए वरदान सिद्ध होगी”………पास खड़े एक अन्य व्यक्ति ने कहा, “जिसने एसिड फेंका था, उस लड़के को पुलिस ने हिरासत में ले लिया है, पूछ-ताछ जारी है…देखो क्या होता है, कल अखबार में पढ़ेंगे… चलो अभी सब अपने-अपने काम पर जाओ.”
दूसरी ओर् अस्पताल में डॉक्टर ने लड़की के माता-पिता से कहा, “हमने अपनी पूरी कोशिश की, आपकी बिटिया की जान तो बच गई पर उसका चेहरा एसिड के कारण बुरी तरह झुलस गया है ..वह नेत्रहीन भी हो गई है…. अब उसे इस कष्ट के साथ जीवन पार करना होगा.” …………माँ-बाप यह सुन अधमरे से हो गए. उन्हें अब ज़िंदगी की अंधेरी सुरंगों में भटकने के अलावा कोई विकल्प न दिख रहा था.
उधर पुलिस हिरासत में लड़की पर एसिड फेंकने वाले लड़के से प्रश्न किया गया कि तुमने ऐसा घृणित कार्य क्यों किया? तो लड़के ने दो टूक शब्दों में उत्तर दिया, ” अजी घृणित क्या? लड़की पर दिल आया … पर लड़की ने घास भी न डाली……हरा#@&दी को अपने चेहरे, अपने हुस्न पे बड़ा गुमान था, तो बस एसिड से मुँह धुला दिया मा#@&#द का, अब ज़िंदगी भर एसिड के द्वारा जो उसकी सुंदरता के चीथड़े उड़ाएं हैं, उन्हें आईने में देख खुद के अक्स से भी भय लगेगा छि#@#ल को.”
पुलिस वाले ने दो डंडे घसीट के मारे …. अन्य पुलिस वाले ने पूछा, “लड़की तुम्हें जानती थी क्या पहले से? “….. लड़के ने जवाब दिया, “अरे मारते क्यों हो जनाब, मेरे पिता बहुत बड़े सत्ताधारी हैं, बाकी आप खुद ही समझदार हो …. रही बात लड़की की….अरे जनाब! वो तो रोज सुबह 8:00 बजे बस नं0 365 पकड़ती और शाम 6:00 बजे से पहले इसी बस से वापस आती थी……… बस स्टाप से घर तक जाते-जाते उसको 15 मिनट का समय लगता ….. अब उसे तो पता भी नहीं था कि पिछले 2 महीने से हमारा दिल उस पर आ गया था … पर जब एक दिन हमने उसका हाथ पकड़ कर उसे चूम कर अपने प्यार का इज़हार करने की कोशिश की तो हमको कँटाप मार दिया साली ने … तो हमने भी अगले दिन उसके चेहरे पर एसिड उड़ेल् कर कंटाप मारा अपने ‘इश्टाइल’ में, जिसके निशां अब ज़िंदगी भर उसके चेहरे पे दिखाई देंगे.”
पुलिस वाले लड़के की बदसलूखी और नपुंसकता की घिनौनी कहानी सुन बेहद आक्रोशित हो उठे और उसको दो- चार घूंसे मारे….. तभी लड़के की पत्नी और घरवाले भागते हुए आए………. पुलिस यह देख दंग थी कि यह लड़का जो अपनी आशिकी की घिनौनी कहानी बेशर्मों की तरह बयां कर रहा है, वो शादी-शुदा है … तब तक लड़के की पत्नी ने कहा, “अरे! आप लोग इन पर रहम करो, इन्होंने इतनी कोई बड़ी बात नहीं कर दी ….वो लड़की ही चरित्रहीन थी .. अपनी खूबसूरती पर इतना भी घमंड किस बात का … अब आदमी लड़के हैं…. गर्म खून के हैं, आ गई होगी गुस्सा”……. एक पुलिस अधिकारी ने ड्पटते हुए कहा, “आप के पति ने जो किया है वो संगीन जुर्म है और आप दुनिया भर के मर्दों की तुलना अपने पति के साथ न ही करे, इसने जो किया है वो माफी के योग्य नहीं बल्कि घोर अपराध है जिसके लिए इसको कड़ी से कड़ी सज़ा मिलेगी और जेल तो जाना ही पड़ेगा.”
लड़के की पत्नी ने कहा, ” क्या बात आप कर रहे हैं सर? जेल! अपराध! क्या बकवास है….. सिर्फ एसिड ही तो डाला है ……. लड़की जीवित है, मरी तो नहीं ……पैसा दे देंगे हम लोग ….इतने भी बुरे नहीं हैं और आप लोगों ने ये क्या लगा रखा है संगीन जुर्म वगैरह ……….एसिड फेंकना संगीन जुर्म होता तो बचपन में मैंने खेल-खेल में अपनी ही कक्षा में अपनी सहपाठी को सबक सिखाने हेतु, केमिस्ट्री लैब में उस पर जबरन एसिड खुद अपने हाथों से फेंका था …… वो बेचारी तो अब तक अपना मुँह किसी को दिखाने लायक नहीं रही ……….. मैंने उस पर एसिड फेंका और उलटा उसी को फँसा दिया, यह कहकर कि देखो ये लड़की टीचर जी पर एसिड फेंक रही थी पर इसका पैर लड़खड़ा गया तो खुद ही पर उड़ेल लिया और विद्यालय प्रशासन ने भी तब मेरा साथ दिया था……… एक तरफ उस लड़की की ज़िंदगी बर्बाद हुई तो दूसरी तरफ मेरी टीचर की मैं, सबसे पसंदीदा छात्रा बन गई ……. अब आप ही बतायें कि अगर एसिड फेंकना इतना बड़ा अपराध होता तो आज मैं, उसी विद्यालय में रसायन विज्ञान की शिक्षिका न होकर, जेल में चक्की चला रही होती.”
पुलिस वाले स्तब्ध व निरीह आँखों से उस महिला को देखते रह गए और एक गहरे द्वंद्व में डूब गए.
कहानी हमारे समाज की विकृत सोच, भावना को सामने लाती है ….यह कहानी नहीं, सच्चाई है…..ज़िंदगी की वो घिनौनी सच्चाई जिस पर हम अमूमन पर्दा डालते रहते हैं.
तेजाब से बर्बाद हुई ज़िन्दगियों की कहानी बहुत लंबी है. आज आपको हर रोज़ अखबार, खबरिया चैनल, न्यूज़ पोर्टल, सोशल मीडिया आदि पर एसिड अटैक की तमाम खबरें पढ़ने और देखने को मिल जाएंगी. यह कहानियां भारतीय समाज में महिलाओं की उस दर्दनाक सच्चाई को बयां करती हैं जिस सूरत में महिलाओं के लिए अपने वजूद को बचा पाना बेहद मुश्किल होता है.
समाज के ठेकेदारों द्वारा एसिड अटैक पीड़ितों पर लिखकर, टीवी प्रोग्राम चला कर, सेमिनार आदि आयोजित करके सिर्फ खानापूर्ति की जाती है, क्योंकि अगले ही पल पुनः एसिड अटैक की शिकार महिला कहीं अपना इलाज कराने के लिए जूझ रही होती हैं.
न्यायपालिका भी कुछ आदेश लाकर और सरकार लाखों कमेटियों की तरह एक और कमेटी बनाकर सुकून की सांस लेती है और फिर एक बार अपने रूटीन ढर्रे पर लौट आती हैं। सामाजिक कार्यकर्ता दो चार लेख, एक दो जंतर-मंतर पर धरने प्रदर्शन और टीवी की चर्चा में शामिल होकर अपने घर आकर चैन से सो जाते हैं या अपने गैर सरकारी संगठन में विदेशी फंड्स भरने हेतु एसिड अटैक पीड़िताओं को अपने “प्रोडक्ट्स” की तरह प्रदर्शित करते हैं, उनकी कहानी को बार-बार कुरेद कर, उन पर अहसानों का भार डाल कर उनकी सिसकियों तक को खामोश कर दिया जाता है. एसिड अटैक जैसे बर्बर अपराध को जड़ से उखाड़ फेंकने के लिए अधिक कठोर कदम उठाने की जरुरत है.
वर्ष 2005 की बात है, तेज़ाब पीड़ित लक्ष्मी की तरफ से दायर याचिका पर कोर्ट ने दिशा निर्देश जारी किए थे। इतना ही नहीं, इसके बाद वर्ष 2012 में एसिड हमले को भारत की दंड संहिता में अलग से दर्ज कर दिया गया। देश में एसिड की बिक्री को लेकर नए कानून आने के बावजूद जमीनी स्तर पर हालातों में कोई खास बदलाव देखने को नहीं मिला है. एसिड अटैक अपने आप में एक नए अलग तरह का अपराध है और सरकार ने अपराध कानून संसोधन एक्ट 2013 के जरिये भारतीय दंड संहिता में कुछ प्रावधानों को जोड़ा.
आईपीसी की धारा 326A
आईपीसी की धारा 326A के अनुसार यदि किसी व्यक्ति द्वारा किसी अन्य व्यक्ति के शरीर पर नुकसान पहुंचाने के इरादे से एसिड फेंका गया है और पीड़ित पूर्ण रूप से या आंशिक रूप से जख्मी हुआ है, तो यह कृत्य गैर जमानती अपराध की श्रेणी में आयेगा. इसके तहत दोषी को कम से कम 10 साल की सजा और अधिकतम उम्रकैद के साथ ही जुर्माने साथ दंडित किए जाने का प्रावधान है.
आईपीसी की धारा 326B
आगरा कोई व्यक्ति किसी अन्य व्यक्ति के शरीर पर घायल करने के उद्देश्य से एसिड फेंकने का प्रयास करता है तो यह भी गैर-जमानती अपराध की श्रेणी में आता है, इसके तहत दोषी के लिए कम से कम 5 साल की सजा के साथ जुर्माने का भी प्रावधान है.
अपराध कानून संसोधन एक्ट 2013 में सेक्शन 357B और सेक्शन 357C को भी जोड़ा गया है, जिसके तहत एसिड अटैक की पीड़िता को राज्य सरकार की तरफ से मुआवजा दिया जाएगा, यह मुआवजा सेक्शन 326A के तहत मिलने वाली जुर्माना राशि के अतिरिक्त होगा. इसी के साथ सरकार को पीड़िता को निशुल्क मेडिकल सुविधा भी उपलब्ध करानी होगी.
लक्ष्मी अग्रवाल मामले में में सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया था कि एसिड अटैक से पीड़िता की निजी, सामाजिक और आर्थिक जिंदगी पर काफी असर पड़ता है और इस तरह के पीड़ित के लिए 3 लाख रुपये की मदद काफी कम है. सुप्रीम कोर्ट ने 3 लाख रुपये की नुकसान भरपाई राशि को बढ़ा कर 6 लाख रुपये कर दिया था.
एसिड अटैक केस में आरोपी को मौत की सजा भी सुनाई जा चुकी है. मुंबई के प्रीति राही अटैक केस में आरोपी ने पीड़िता पर तब एसिड फेंका था, जब वह बांद्रा टर्मिनस के प्लेटफॉर्म नंबर 3 पर खड़ी हुईं थीं. अटैक के बाद 30 दिनों तक भीषण दर्द के बाद प्रीति ने अपनी आँखों की रोशनी खो दी थी. अटैक से प्रीति का चेहरा बुरी तरह झुलस गया था, उनका सीना और फेफड़े बुरी तरह प्रभावित हुए थे, साथ ही उनकी सांस लेने और खाने की नली भी बुरी तरह प्रभावित हुई थी. बॉम्बे हाईकोर्ट ने इस घिनौने और भयानक कृत्य के लिए आरोपी को मौत की सजा सुनाई थी.
2004 के एक एसिड अटैक मामले में सुप्रीम कोर्ट ने 2019 में टिप्पणी करते हुए कहा था, “एसिड अटैक के दोषियों के साथ नर्मी बरते जाने की कोई गुंजाइश नहीं है, इस हमले के बाद पीड़िता को जो भावनात्मक रूप से आघात पहुंचा है, उसकी भरपाई किसी भी मुआवजे से नहीं की जा सकती.
‘आँख के बदले आँख लोगे तो पूरी दुनिया अंधी हो जाएगी’…..ऐसा बहुत से लोगों को बोलते सुना है पर कभी तेज़ाब की एक बूँद को अपनी उंगली पर रख कर देखें, शायद तब आप किसी एसिड अटैक पीड़ित के गुनहग़ार के बचाव में इस (अ) मानवीय बात का उदाहरण प्रस्तुत नहीं करेंगे. मानवता की आड़ में न्याय व्यवस्था को लचर बनाने वाले गैर सामाजिक तत्वों को चिन्हित कर उनका सामाजिक बहिष्कार करना आवश्यक है क्योंकि दंड ही न्याय है और न्याय ही है असल मायनों में धर्म की स्थापना का ज़रिया.