बचपन से मुझे तथाकतित अक्लमंदों की बाते ना समझ आती है ना ही इनका रवईया। इन लोगो को अपने साये से डर लगने लगता है परन्तु आतंकियों में इन्हे मासूम नज़र आता है मैं यह नहीं कहूंगा की इनका इलाज करवाइये या इनको उन मासूमो के पास भेज दीजिये क्योकि में भारतीय हूँ अमेरिकन नहीं। गन्दगी हमारी है तो साफ़ भी हमे ही करना चाहिए जी हाँ साफ़ करना चाहिए उसे इकठा नहीं करना चाहिए। अन्यथा जिस जगह पर गन्दगी इकठा करते है वह पाकिस्तान बन जाता है और यह गलती हम ७५ वर्ष पहले कर चुके है।हमे अपनी गलतियों से सीखना चाहिए और आतंकियों के पहरेदारों को रेखांकित कर के अच्छे से समझा देना चाहिए की ऐसे विचार और तुलना अगर कही और की होती तो अंधकार में साया ढूंढ रहे होते।
तालिबानी हाथ में बंदूक लेकर खड़े हैं लेकिन वहां की जनता अपने देश का झंडा नहीं छोड़ रही जबकि भारत के कुछ लोग खुद को यहां इतना असुरक्षित समझते हैं कि वो बात-बात पर देश छोड़ने की बात करने लगते हैं। शायर मुन्नवर राणा ने भी कुछ ऐसा ही बयान दिया है। उन्होंने कहा है कि तालिबान किसी को भागने पर मजबूर नहीं कर रहा जबकि उत्तर प्रदेश के हालात देखकर उनका यहां से भाग जाने का मन करता है। मुस्लिम पर्सनल ला बोर्ड के प्रवक्ता मौलाना सज्जाद नोमानी ने तालिबान की जीत पर खुशी जताई व भारतीय मुसलमानों की ओर से उन्हें सलाम भी भेज दिया। शफीकुर्रहमान बर्क ने अफगानिस्तान पर तालिबान के कब्जे की तुलना भारत के स्वाधीनता संग्राम से कर दी। आप यकीन कीजिये इन्हे मैं सभ्य व पड़ा-लिखा समझता था।
मुन्नवर राणा कह रहा हैं कि पिछले 1100 वर्षों में कभी किसी अफगानी ने भारत पर हमला नहीं किया। लेकिन सच ये है कि पिछले एक हजार वर्षों में अफगानिस्तान से आए आक्रमणकारियों ने भारत पर कम से कम 33 बार हमले किए।इनको कोई समझाए किताबे सजाने के लिए नहीं पढ़ने के लिए होती है।आप के प्रति सम्मान तो स्वाह हो गया है फिर भी आग्रह करूँगा आतंकियों को सर्टिफिकेट बांटने की जगह विटामिन बी १२ का टेस्ट करा लीजिये।
एक और है, समाजवादी पार्टी के सांसद शफीकुर्रहमान बर्क जिसने अफगानिस्तान पर तालिबान के कब्जे की तुलना भारत के स्वाधीनता संग्राम से कर दी। मुस्लिम पर्सनल ला बोर्ड के प्रवक्ता मौलाना सज्जाद नोमानी ने न केवल तालिबान की जीत पर खुशी जताई, बल्कि भारतीय मुसलमानों की ओर से उन्हें सलाम भी भेज दिया। यह महज एक वाहियात बयान ही नहीं, ओछी हरकत भी है। इसकी जितनी भी कड़ी आलोचना की जाए, कम है। तालिबान की तरफदारी करने वाले बेतुके बयान यही संकेत करते हैं कि भारत में भी कुछ लोग उसी तालिबानी सोच से ग्रस्त हैं, जो अफगानिस्तान के साथ-साथ पूरी दुनिया के लिए खतरा बन गई है।
इन लोगों से बात करना व्यर्थ है, ये अपनी घृणित सोच सही साबित करने के लिए किसी हद तक कुतर्क कर सकते है। जैसे पहले कहते थे – अच्छे तालिबान बुरे तालिबान – अब कह रहे है तालिबान बदल गए है – इन्होने तो डायरेक्ट पास का सर्टिफिकेट दे दिया। तालिबान की प्रेस कांफ्रेंस सुनी – सब सही है। मैं शर्त लगाने को तैयार हूँ की इन मूर्खो ने न पढ़ा है न सुना है बस सोशल मीडिया से अपनी पसंद की बाते उठायी है।यह सच है तालिबान ने कहा था कि इस बार के उसके शासन में महिलाओं को ज्यादा आजादी और इस्लाम के मुताबिक अधिकार दिए जाएंगे, लेकिन कुछ ही घंटों में तालिबान एक्सपोज हो गया।अफगानिस्तान के बल्ख प्रांत की महिला गवर्नर सलीमा मजारी को तालिबान के आतंकवादियों ने बन्धक बना लिया है। सलीमा मजारी ने कुछ दिन पहले कहा था कि वो तालिबान के डर से अफगानिस्तान छोड़ कर कहीं नहीं जाएंगी। लेकिन उन्हें दुनिया ने अकेला छोड़ा दिया और अब कोई नहीं जानता कि वो जिन्दा हैं या उन्हें मार दिया गया? वहीं तालिबान ने अफगानिस्तान में एक महिला की सिर्फ इसलिए हत्या कर दी क्योंकि उसने अपने घर से बाहर निकलते वक्त हिजाब नहीं पहना था। अफगानिस्तान के सरकारी न्यूज चैनल की महिला एंकर शबनम दरवान को तालिबानियों ने यह कहते हुए काम करने से रोक दिया कि अब सत्ता बदल गई है और तुम घर जाओ। महिलाओं की आजादी के लिए तालिबान की शर्त ये है कि ये आजादी इस्लाम के हिसाब से मिलेगी। यानी देर सवेर महिलाओं को शरिया कानून मानने ही होंगे और जो नहीं मानेगा उसकी हत्या कर दी जाएगी। तालिबान का खौफ अफगानिस्तान की महिलाओं में साफ देखा जा सकता है। अफगानिस्तान की एक लड़की ने सोशल मीडिया पर एक पोस्ट किया है। इसमें ये लड़की रोते हुए कह रही है कि दुनिया ने उन्हें तालिबान के सामने मरने के लिए छोड़ दिया है। यह सच भी है। पहले भी जब शरिया कानून के तहत बुर्का और हिजाब नहीं पहनने पर चौराहों पर महिलाओं को कोड़े मारने की सजा दी गई तब भी दुनिया ने कभी इन महिलाओं के दर्द को नहीं समझा और महिलाओं के उत्थान और अधिकारों की बातें करने वाली अंतराष्ट्रीय संस्थाएं, नेता और एनजीओ ने भी कभी इस पर कुछ नहीं कहा और स्थिति आज भी वैसी है।
तालिबान ने अपने नए शासन का नाम Islamic Emirate of Afghanistan रखा है। आज जब अफगानिस्तान इतने बड़े संकट में है, तब संयुक्त राष्ट्र कहा है? संयुक्त राष्ट्र पूरी दुनिया में लोकतांत्रिक मूल्यों और लोगों की आजादी के लिए काम करता है, सुनते तो यही थे। इस समय दुनिया के 12 देशों में संयुक्त राष्ट्र की शांति सेना मौजूद हैं। इनमें एक शांति सेना कश्मीर में भी काम कर रही है। हालांकि अफगानिस्तान में मानव अधिकारों को लेकर संयुक्त राष्ट्र का कोई मिशन नहीं है। इससे आप इस अंतर्राष्ट्रीय संस्था के चरित्र को समझ सकते हैं। वो कुछ भी करे वो कौन से अपने है पर मुन्नवर राणा, शफीकुर्रहमान बर्क या मौलाना सज्जाद नोमानी जैसे तो अपने है……… हैं ना ??? … सोचिये समय निकल रहा है।