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अपने लक्ष्य के प्रति ईमानदार रहने वाले को ही मिलती है सफलता

by On The Dot
December 18, 2020
Reading Time: 1 min read
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अपने लक्ष्य के प्रति ईमानदार रहने वाले को ही मिलती है सफलता

Image Courtesy: Google

अगर आप कभी किसी बच्चे से पूछें कि वो बड़ा होकर आखिर क्या बनना चाहता है तो समय-समय पर उसके विचारों में बदलाव मुमकिन है। लेकिन व्यक्ति अगर समझदार होने के बाद भी इसी तरह बार-बार अपना लक्ष्य बदलता रहता है तो ये चिंता का विषय हो सकता है। अकसर देखा गया है कि असफल लोग निराश होकर अपना रास्ता बदल देते हैं, तो कुछ लोग दूसरों के कहने पर या उनकी देखा-देखी अपना रास्ता बदल देते हैं। मगर ऐसा करना कितना सही है, यह इस कहानी में बताया गया है।

एक बार की बात है, एक निःसंतान राजा था, वह बूढा हो चुका था और उसे राज्य के लिए एक योग्य उत्तराधिकारी की चिंता सताने लगी थी। योग्य उत्तराधिकारी के खोज के लिए राजा ने पुरे राज्य में ढिंढोरा पिटवाया कि अमुक दिन शाम को जो मुझसे मिलने आएगा, उसे मैं अपने राज्य का एक हिस्सा दूंगा।

राजा के इस निर्णय से राज्य के प्रधानमंत्री ने रोष जताते हुए राजा से कहा, महाराज, आपसे मिलने तो बहुत से लोग आएंगे और यदि सभी को उनका भाग देंगे तो राज्य के टुकड़े-टुकड़े हो जाएंगे। ऐसा अव्यावहारिक काम न करें। राजा ने प्रधानमंत्री को आश्वस्त करते हुए कहा, प्रधानमंत्री जी, आप चिंता न करें, देखते रहें, क्या होता है।

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निश्चित दिन जब सबको मिलना था, राजमहल के बगीचे में राजा ने एक विशाल मेले का आयोजन किया। मेले में नाच-गाने और शराब की महफिल जमी थी, खाने के लिए अनेक स्वादिष्ट पदार्थ थे। मेले में कई खेल भी हो रहे थे।

राजा से मिलने आने वाले कितने ही लोग नाच-गाने में अटक गए, कितने ही सुरा-सुंदरी में, कितने ही आश्चर्यजनक खेलों में मशगूल हो गए तथा कितने ही खाने-पीने, घूमने-फिरने के आनंद में डूब गए। इस तरह समय बीतने लगा।

इन सभी के बीच एक व्यक्ति ऐसा भी था जिसने किसी चीज की तरफ देखा भी नहीं। उसके मन में निश्चित ध्येय था कि उसे राजा से मिलना ही है। इसलिए वह बगीचा पार करके राजमहल के दरवाजे पर पहुंच गया। पर वहां खुली तलवार लेकर दो चौकीदार खड़े थे। उन्होंने उसे रोका। उन्हें अनदेखा करके और चौकीदारों को धक्का मारकर वह दौड़कर राजमहल में चला गया, क्योंकि वह निश्चित समय पर राजा से मिलना चाहता था।

जैसे ही वह अंदर पहुंचा, राजा उसे सामने ही मिल गए और उन्होंने कहा, मेरे राज्य में कोई व्यक्ति तो ऐसा मिला जो किसी प्रलोभन में फंसे बिना अपने ध्येय तक पहुंच सका। तुम्हें मैं आधा नहीं पूरा राजपाट दूंगा। तुम मेरे उत्तराधिकारी बनोगे।

इस कहानी से हमें यह सीख मिलती है :

  • सफल वही होता है जो लक्ष्य का निर्धारण करता है, उस पर अडिग रहता है, रास्ते में आने वाली हर  कठिनाइयों का डटकर सामना करता है और छोटी-छोटी कठिनाईयों को नजरअंदाज कर देता है।
  • किसी के कहने से अगर आज हम अपना रास्ता बदल रहे हैं, तो हमें यह समझना चाहिए कि जो आज हमें सलाह दे रहा है कल मुश्किल आने पर वह हमारा साथ देगा या नहीं। अगर ऐसा नहीं है, तो हमें भी किसी के कहने पर अपना रास्ता नहीं बदलना चाहिए।
  • हमारे रास्ते में कई प्रलोभन भी आते हैं, अगर हम उनमें अटक गए तो मंजिल से भटकना तय है। इसलिए अपने लक्ष्य की ओर बढ़ते समय प्रलोभन में अटकने से बचना चाहिए।
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