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अकेली माँ के अतुलनीय संघर्ष व बलिदान से बेटे ने लहराया सफलता का परचम

by On The Dot
July 18, 2021
Reading Time: 1 min read
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अकेली माँ के अतुलनीय संघर्ष व बलिदान से बेटे ने लहराया सफलता का परचम

साजन प्रकाश पहले भारतीय तैराक हैं जिन्होंने ओलंपिक ‘ए’ क्वालिफिकेशन टाइम पार कर अपना नाम इतिहास के पन्नों पर स्वर्णिम अक्षरों में दर्ज कराया है। उन्होंने रोम में सेट्टे कोली ट्रॉफी में पुरुषों के 200 मीटर बटरफ्लाई वर्ग में एक मिनट 56.38 सेकेंड का समय निकाला। रियो ओलंपिक 2016 खेल चुके साजन टोक्यो ओलंपिक ‘ए ’ स्टैंडर्ड में प्रवेश में 0.1 सेकेंड से कामयाब रहे। टोक्यो ओलंपिक ए स्टैंडर्ड एक मिनट 56.48 सेकेंड है। अपनी सफलता का श्रेय प्रकाश अपनी माँ शानत्यमोल को देते हैं जिन्होंने अनेकों झंझाओं के बीच भी अपने बेटे के सपने को साकार करने के लिए उसका हर पल साथ दिया।

साजन प्रकाश की परवरिश एक सिंगल मदर ने की है जो खुद एक एथलीट थीं, जिन्होंने 1987 वर्ल्ड और एशियन जूनियर्स में 100 मीटर, 200 मीटर स्प्रिंट दौड़ लगाई थी। 1992 में शादी और 1993 में साजन के जन्म के एक साल बाद उनके पति ने उन्हें छोड़ दिया।

प्रकाश की माँ शानत्यमोल कहती हैं, “सच कहूँ तो, यह अच्छे के लिए ही था कि मेरे पति कभी वापस नहीं आये। एक शराबी, हिंसक आदमी के साथ रहना एक रोजमर्रा की मानसिक यातना के अतिरिक्त कुछ न था। जो भी लड़की शादी करती है उसे नौकरी अवश्य करनी चाहिए।”

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शानत्यमोल ने 18 साल की उम्र में स्पोर्ट्स कोटा के आधार पर नौकरी प्राप्त की और साजन की परवरिश में व्यस्त हो गयीं। वे अपने बेटे को थर्मल पावर साइट में काम करने वाले कर्मचारी के बराबर ही सुविधाएं दे सकीं। वहां एक इंडोर स्विंमिग पूल था। साजन जब 3 साल के थे तब वहां से उन्होंने तैराकी करना शुरू किया। जब वह 10 साल के हुए तो उन्होंने इस खेल को काफी गंभीरता से लिया।

अपने संघर्ष के दिनों को याद करते हुए शानत्यमोल बताती है कि साजन दौड़ और कूदने में अच्छा था। वह एक अच्छा नर्तक भी था हालांकि जब मैंने उसे भरतनाट्यम सिखाना चाहा तो उसने निवेदन किया कि वह पश्चिमी नृत्य सीखना चाहता है। और साजन ने पूरी दक्षता के साथ उसे सीखा। उस उम्र में मैंने उसे वह दिया जो मैं कर सकती थी।

शांतिमोल बताती हैं कि उनको 10 साल की उम्र का एक शरारती बच्चा (साजन) याद है जो एक चमकदार बैटरी कार चाहता था जिसकी कीमत अदा कर पाना उस वक़्त मेरे लिए कठिन था। 10 साल की उम्र के बाद, मुझे लगता है कि साजन ने महसूस कर लिया था कि उसकी माँ के पास कुछ भी नहीं है, और उसने उस नन्ही उम्र में नए कपड़ों के साथ अन्य वस्तुएं माँगना भी बंद कर दिया। जीवन आसान नहीं था, कठिनाइयों से भरा था।

“जब साजन बेहतर तैराकी सुविधाओं के लिए बैंगलोर चला गया, तो मैं नियमित रूप से सप्ताहांत 8.30 शाम की बस लेती थी, अगली सुबह पहुँचती थी, और उसी रात लौटती थी।”

साजन प्रकाश की माँ रात भर में नेयेवेली के अपने घर से 380 किलोमीटर का सफर तय करती थीं और अपने बैग में तीन टॉर्च रखती थीं क्योंकि सड़के खराब होने के कारण बस कभी भी पंचर हो जाती थो और ऐसे में वह इन टॉर्च से पंचर जोड़ने में बस ड्राइवर की मदद करती थीं और कई बार खुद भी पंचर ठीक करती थीं। इस बीच उनके सामने ऑफिस पहुंचने की जद्दोजहद भी थी।

शानत्यमोल ने बताया, “मुझे अगली सुबह ठीक 8:30 बजे ऑफिस पहुंचना होता था, नहीं तो मेरी आधे दिन की सैलरी कट जाती थी। राज्य ट्रांसपोर्ट की बस बार-बार रुकती थीं क्योंकि उस रास्ते पर टायर पंचर हुआ करते थे। बस का बार-बार रुकना मेरे लिए अच्छा नहीं था क्योंकि मैं देर से नहीं पहुंच सकती थी। मैंने तीन टॉर्च लेकर सफर करना शुरू किया कई बार बस से उतर कर खुद पंचर ठीक किए।”

“साजन का बंगलौर में तैराकी का निरंतर अभ्यास व् प्रतियोगिताओं में भागीदारी हेतु मैंने अपने जीवन से हर विलासिता को काट दिया। वह प्रतियोगिताओं में यात्रा हेतु ट्रेनों का सफर नहीं कर सकता था, और हवाई जहाज की लागत मेरे लिए बड़ी चुनौती थी। मेरी बचत का 90 प्रतिशत यह सुनिश्चित करने में चला जाता था कि वह प्रतियोगिताओं में शामिल हो सके। 2015 तक साजन ने सेकेंड हैंड सूट का भी इस्तेमाल किया।”

“साजन ने कुछ समय रेलवे में नौकरी भी की। बंगलौर में उसकी नौकरी में लंबे समय तक खड़े रहना और सात ट्रेनों के हर डिब्बे की जांच करना शामिल था। लंबे घंटों के प्रशिक्षण के अलावा, यह उसके लिए थका देने वाला अनुभव हुआ करता था। उसका काम बेहद तनावपूर्ण था।”

“मैंने अपनी युवावस्था में खेलकूद के क्षेत्र में स्कूल, राज्य, राष्ट्रीय स्तर पर बहुत कुछ जीता था। दौड़ना मेरा जुनून था लेकिन जीविकोपार्जन मेरे लिए अधिक महत्वपूर्ण हो गया था, इसलिए मैं सक्रिय रूप से प्रतिस्पर्धा नहीं कर सकी। 2015 में दक्षिण भारत की विनाशकारी बाढ़ ने नेयेवेली में भी तबाही मचाई थी। मेरे सभी रनिंग सर्टिफिकेटस निचले दराज में थे और नष्ट हो गए थे, इसलिए मेरे पास यह साबित करने के लिए कुछ भी नहीं बचा है कि मैं एक अच्छी एथलीट भी थी। शुक्र है कि साजन के प्रमाणपत्र ऊपरी दराज में थे और हम उन्हें बचा सके।”

“मैं साजन के लिए एक घर बनाना चाहती हूं। उसके पास स्थायी पते का प्रमाण भी नहीं है, क्या आप सोच सकते हैं? प्रकाश ने 2018 में एक स्वर्ण पदक के बाद एक बड़ी ट्रॉफी जीती, जिसे हम घर नहीं ला सके क्योंकि इस घर में कोई जगह नहीं है। ट्रॉफी केरल स्पोर्ट्स काउंसिल शोकेस में सुशोभित है। मुझे लगता है कि मेरे बेटे को अपनी ट्राफियां रखने के लिए एक घर की जरूरत है! साजन की जिंदगी दुनिया के 5-6 शहरों में फैली हुई है। कुछ चीजें बैंगलोर में दो दोस्तों के घरों में, कुछ बैंकॉक में, कुछ दुबई में। यह दुनिया के विभिन्न हिस्सों में सूटकेस में एक संग्रहालय की तरह हैं।”
साजन प्रकाश और उनकी माँ का संघर्ष यह सिद्ध करता है कि भले ही उनकी महिमा के टुकड़े अलग-अलग जगहों पर बिखरे हों, लेकिन वे जहां भी जाते हैं, अपनी मां के नैतिक मूल्यों को अपने भीतर रखते हैं।

साजन प्रकाश कहते हैं, “आप कल्पना कर सकते हैं कि एक एकल माँ का जीवन कितना कठिन हो सकता है। मुझे मेरी माँ का सशक्त रवैया व् बेमिसाल हौसला विरासत में मिला है। वह बिल्कुल भी कमजोर दिल की नहीं है। वह खेल के लिए प्रशिक्षण के दर्द को समझती थीं। वह हमेशा जानती थी कि लक्ष्यों तक पहुंचना कितना मुश्किल है, इसलिए उन्होंने मुझे बिना यह महसूस किए ही कि यह एक सख्त जीवन है, मुझमें अनुशासन का संचार किया। साथ ही कई बच्चों में क्षमताएं होती हैं, लेकिन केवल कुछ माता-पिता जो खेल में रहे हैं, विफलता के क्षणों को समझ सकते हैं। उनका ज्ञान खेल के उतार-चढ़ाव के माध्यम से बच्चों को मानसिक रूप से मजबूत रखने में मदद करता है।”

प्रकाश अपने जीवन के कठिन समय को याद करते हुए कहते हैं, “एक अच्छे स्विमसूट की कीमत लगभग 18-25 हजार रुपये हो सकती है, और अब मुझे जो चाहिए उसके लिए मुझे प्रायोजक मिल सकते हैं। लेकिन उस समय, हालांकि मेरे पास दूसरों की तरह पोषण या पूरक नहीं था, मेरी माँ किसी तरह मेरे करियर को आगे बढ़ाने में कामयाब रही। अनुशासन केवल रोजाना सुबह 5 बजे उठना नहीं है। मेरी माँ ने मुझे जो सिखाया वह कभी हिम्मत न हारने वाला रवैया है। यह वही है जो आप अपने मन में सोचते हैं और जीवन में आगे बढ़ते हैं।

साजन का कहना है, “मुझे तैराकी में लाने के पीछे मेरी माँ का सबसे अहम योगदान है। उन्होंने मुझे इस खेल के प्रति काफी प्रेरित किया इसलिए मैं अपने इस सफर में सबसे बड़ा योगदान माँ का मानता हूँ, जिनके चलते मैंने तैराकी करना शुरू किया था और आज यहां तक आ पहुंचा हूँ।”

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