आज विश्व थिएटर डे और यह दिवस प्रत्येक वर्ष २७ मार्च के दिन मनाया जाता हैं. इसका उद्देश्य रंगमंच (थिएटर) से जुड़े लोगो को प्रोत्साहित करना और साथ ही थिएटर को लेकर लोगो को जागरूक करना भी है । २७ मार्च २०२२ को ६०वां विश्व थिएटर दिवस मनाया जायेगा ।
रंगमंच दो शब्दों के मेल से बना है रंग और मंच, यानि कि ऐसा मंच जिस पर विभिन्न रंगों को लोगों के बीच प्रदर्शित या पेश किया जा सके। पश्चिमी देशों में या अंग्रेजी में इसे Theater (थियेटर) शब्द से संबोधित किया जाता है।
एक समय था जब सिनेमा के परदे को कोई नहीं जानता था. उस दौर में मनोरंजन, सामाजिक मुद्दों को लेकर जागरूकता और खुशियों को अभिनय के माध्यम से सजा कर दिखता था थिएटर जो हमारे जीवन का एक हिस्सा था. रंगमंच के द्वारा कलाकार अपनी कला को हमारे सामने प्रस्तुत करते थे.
लेकिन आज के दौर में सिनेमा का प्रचलन सबसे अधिक हैं रोजाना कोई ना कोई मूवी निकलती रहती हैं इसके कारण हम सभी रंगमंच की दुनिया से दूर होते जा रहे.
विश्व रंगमंच दिवस मानाने का उद्देश्य इतना हैं की हम सभी लोगो में थिएटर के पार्टी जागरूक करना थिएटर से जुड़े कलाकारों को प्रोत्साहित करना.
विश्व रंगमंच दिवस का इतिहास
विश्व रंगमंच दिवस, की शुरुआत १९६१ में इंटरनेशनल थिएटर इंस्टीट्यूट द्वारा की गई थी. और उसके बाद प्रत्येक वर्ष २७ मार्च को पुरे विश्व में विश्व रंगमंच दिवस के रूप में मनाया जाने लगा. जिसे रंगमंच से संबंधित अनेक संस्थाओं और समूहों द्वारा आयोजित किया जाने लगा । इस अवसर पर किसी एक देश के रंगकर्मी द्वारा विश्व रंगमंच दिवस के लिए आधिकारिक सन्देश जारी किया जाता है। १९६२ में फ्रांस के जीन काक्टे पहला अंतरराष्ट्रीय सन्देश देने वाले कलाकार थे। कहा जाता है कि पहला नाटक एथेंस में एक्रोप्लिस में स्थित थिएटर ऑफ डायोनिसस में आयोजित हुआ था। यह नाटक पांचवीं शताब्दी के शुरुआती दौर का माना जाता है। इसके बाद रंगमंच पूरे ग्रीस में बहुत तेज़ी से फैला।
मुझे “विलियम शेक्सपीयर” की लिखी एक बात याद है, उसमे लिखा था :
“पूरी दुनिया एक मंच है, और सभी पुरुष और महिलाएं केवल खिलाड़ी हैं, उनके पास उनके निकास और उनके प्रवेश द्वार हैं, और एक आदमी अपने समय में कई भाग खेलता है.”
विश्व रंगमंच दिवस का उद्देश्य
इस दिन को मनाने का मुख्य उद्देश्य लोगों में रंगमंच को लेकर जागरुकता लाना और रंगमंच के महत्व को समझाना है। रंगमंच न सिर्फ लोगों का मनोरंजन करता है बल्कि उन्हें सामाजिक मुद्दों के प्रति जागरूक भी करता है। जिस देश के कलाकार का संदेश इस दिन प्रस्तुत किया जाता है जिसका लगभग 50 भाषाओं में अनुवाद किया जाता है और दुनियाभर के समाचार-पत्रों में वह छपता है।
इंटरनेशनल थियेटर इंस्टीट्यूट :
दुनिया का सबसे बड़ा प्रदर्शन कला संगठन ‘अंतर्राष्ट्रीय रंगमंच संस्थान’ है, इसकी स्थापना नृत्य विशेषज्ञों और यूनेस्को द्वारा साल १९४८ में की गई थी। आईटीआई का मुख्यालय पेरिस, फ्रांस में स्थित है। दुनिया भर में आईटीआई के ८५ से अधिक केंद्र हैं।
भारत में रंगमंच
भारत में रंगमंच का इतिहास बहुत पुराना माना है क्योंकि ऐसी मान्यता है कि नाट्यकला का विकास सबसे पहले भारत में ही हुआ। ऋग्वेद के कतिपय सूत्रों में यम और यमी, पुरुरवा और उर्वशी आदि के कुछ संवाद हैं। इन संवादों को पढ़कर कई विद्वानों का कहना है कि नाटक की शुरुआत यहीं से हुई है।
नाट्यकला का विकास
माना जाता है कि भरतमुनि ने नाट्यकला को शास्त्रीय रूप दिया है। भरत मुनि ने अपने नाट्यशास्त्र में नाटकों के विकास की प्रक्रिया को लिखा है, “नाट्यकला की उत्पत्ति नाट्य दैवी से हुई हैं,
अर्थात दु:खरहित सत्ययुग बीत जाने पर त्रेतायुग के आरंभ में देवताओं ने ब्रह्मा जी से मनोरंजन का कोई ऐसा साधन उत्पन्न करने की प्रार्थना की “जिससे देवता लोग अपना दु:ख भूल सकें और आनंद प्राप्त कर सकें।”
देवताओं की कामना पूर्ण करने के लिए ब्रह्मा जी ने नाट्य देवी की स्तुति स्मरण कर, देवी से प्रकट होने की ईच्छा की, फल सवरूप नाट्य देवी प्रकट हुई ।
भारत की पहली नाट्यशाला और रंगमंच का इतिहास
बताया जाता है कि भारत के महाकवि कालिदास जी ने भारत की पहली नाट्यशाला में ही ‘मेघदूत‘ की रचना की थी। भारत की पहली नाट्यशाला अंबिकापुर जिले के रामगढ़ पहाड़ पर स्थित है, इसका निर्माण महाकवि कालिदास जी ने ही किया था।
भारत में रंगमंच का इतिहास आज का नहीं बल्कि सहस्त्रों वर्ष पुराना है आप इसके प्राचीनता को कुछ इस तरह से समझ सकते हैं कि पुराणों में भी इसका उल्लेख यम, यामी और उर्वशी के रूप में देखने को मिलता है।
जीवन में थिएटर का महत्व
आज थिएटर दुनिया के तमाम रहस्यों और घटनाओं को हमारे सामने लेकर आया है जिनमें कई डॉक्युमेंट्रीज, वेबसीरीज एवं फिल्मे शामिल है, यह सच्ची घटनाओं को रंगमंच के जरिए पुनः जीवित करने का बेहतरीन जरिया है। जो इसके महत्व को बढ़ाने का काम कर रहा है।
बीते सालों में थिएटर की एक अलग ही पहचान बनी है लोग आज इसका बड़ा सम्मान करते हैं।
आज भारत में भी साइंस फिक्शन पर बनी मूवीस की भरमार है साथ ही कई फिल्में विश्व स्तर पर भारत को गौरवान्वित कर रही है, तो वहीं 1957 में मदर इंडिया, 1988 में सलाम बोम्बे और 2001 में लगान फिल्म ऑस्कर के लिए नॉमिनेट हुई थी।
भारत और दुनियाभर में फैले कोरोना वायरस संकट के दौरान फिल्मजगत और थिएटर से जुड़े लोगों ने भी इस महामारी से निपटने में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया है।
आप सभी को विश्व रंगमंच दिवस २०२२ की हार्दिक शुभकामनाएं.
आयुर्वेद में वाचस्पति की उपाधि से अलंकृत ज्योतिषाचार्य (भृगु संहिता-लाल किताब विशेषज्ञ), आध्यात्मिक-योग गुरु डॉ वर्मा प्राचीन भारतीय इतिहास, सनातन धर्म व् संस्कृति की गहरी व् तार्किक समझ रखते हैं. लेखक, टीवी निर्देशक, रेडियो जॉकी व् वॉइस ओवर आर्टिस्ट के रूप में कार्यानुभव व् वर्तमान में विराटगढ़ राजबाटी, कप्तिपदा, ओडिशा के श्री विराटेश्वरी शक्तिपीठ में विराट-पाट पटजोशी के पद पर आसीन हैं.