जलियांलावा बाग कांड के 102 साल आज यानी 13 अप्रैल 2021 को पूरे हो जाएंगे। इस दिन बैसाखी के पर्व पर पंजाब के अमृतसर के जलियांवाला बाग में ब्रिटिश बिग्रेडियर रेजीनॉल्ड डायर ने निहत्थे लोगों पर गोलियां चलवा दी थीं। यह नरसंहार याद कर देशवासियों का खून खौल जाता है। यह दर्दनाक घटना देश कल भी याद करता था, आज भी याद करता है और आने वाले कल में भी याद करता रहेगा।
जानिए आखिर उस दिन क्या हुआ था-
बैसाखी के दिन 13 अप्रैल 1919 को अमृतसर के जलियांवाला बाग में एक सभा रखी गई, जिसमें कुछ नेता भाषण देने वाले थे। शहर में कर्फ्यू लगा हुआ था, फिर भी इसमें सैंकड़ों लोग ऐसे भी थे, जो बैसाखी के मौके पर परिवार के साथ मेला देखने और शहर घूमने आए थे और सभा की खबर सुन कर वहां जा पहुंचे थे। जब नेता बाग में पड़ी रोड़ियों के ढेर पर खड़े हो कर भाषण दे रहे थे तभी डायर ने बाग से निकलने के सारे रास्ते बंद करवा दिए। बाग में जाने का जो एक रास्ता खुला था जनरल डायर ने उस रास्ते पर हथियारबंद गाड़ियां खड़ी करवा दी थीं।
डायर करीब 100 सिपाहियों के सीथ बाग के गेट तक पहुंचा। उसके करीब 50 सिपाहियों के पास बंदूकें थीं। वहां पहुंचकर बिना किसी चेतावनी के उसने गोलियां चलवानी शुरु कर दी। गोलीबारी से डरे मासूम बाग में स्थित एक कुएं में कूदने लगे। गोलीबारी के बाद कुएं से 200 से ज्यादा शव बरामद हुए थे।
इस घटना के प्रतिघात स्वरूप सरदार उधमसिंह ने 21 साल बाद 13 मार्च 1940 को लंदन के कैक्सटन हॉल में इस घटना के समय ब्रिटिश लेफ्टिनेंट गवर्नर मायकल ओ ड्वायर को गोली चला के मार डाला। उन्हें 31 जुलाई 1940 को फांसी पर चढ़ा दिया गया था।
13 अप्रैल को ही रखी गई थी खालसा पंथ की नींव-
इसके अलावा खालसा पंथ की नींव भी 13 अप्रैल के दिन ही रखी गई थी। 13 अप्रैल 1699 को दसवें गुरु गोविंद सिंह जी ने खालसा पंथ की स्थापना की थी। इसी दिन फसल पकने की खुशी में बैसाखी का त्योहार बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है।