कार्तिक मास की पूर्णिमा को महापुनीत पर्व कहा जाता है। इस पूर्णिमा का एक नाम त्रिपुरी पूर्णिमा भी है। कार्तिक पूर्णिमा से कई धार्मिक मान्यताएं जुड़ी हुई हैं। मान्यता है कि कार्तिक पूर्णिमा पर ही भगवान शिव ने त्रिपुरासुर नामक राक्षस का वध किया था। इसलिए भगवान श्री हरि विष्णु ने भगवान शिव को त्रिपुरारी नाम दिया। त्रिपुरासुर के वध पर सभी देवताओं ने स्वर्गलोक से आकर काशी में दीपावली मनाई। इस पावन तिथि को देव दीपावली के रूप में भी मनाया जाता है।
यह भी मान्यता है कि महाभारत का युद्ध समाप्त होने के बाद अपनों को खोने से दुखी पांडवों ने भगवान श्रीकृष्ण के कहने पर कार्तिक पूर्णिमा पर पितरों की आत्मा शांति के लिए तर्पण और दीपदान किया था। कार्तिक पूर्णिमा की तिथि पर ही भगवान विष्णु ने मत्स्य अवतार धारण किया और इसी तिथि पर श्री गुरुनानक देव का जन्म हुआ। कार्तिक पूर्णिमा को प्रकाश उत्सव के रूप में भी मनाया जाता है। कार्तिक पूर्णिमा के अवसर पर दीपदान करना बहुत शुभ माना जाता है। कार्तिक पूर्णिमा पर गंगा स्नान और दान का विशेष महत्व है। मान्यता है कि इस दिन जो भी दान किया जाता है उसका कई गुना फल प्राप्त होता है। कहा जाता है कि इस दिन किया गया दान स्वर्ग में संरक्षित रहता है। इस दिन विधि विधान से भगवान श्री हरि विष्णु और मां लक्ष्मी की पूजा करें। भगवान सत्यनारायण की कथा का पाठ करें। घर में दीपक जलाएं। व्रत रखने वालों को इस दिन हवन अवश्य करना चाहिए।
इस आलेख में दी गई जानकारियां धार्मिक आस्थाओं और लौकिक मान्यताओं पर आधारित हैं, जिसे मात्र सामान्य जनरुचि को ध्यान में रखकर प्रस्तुत किया गया है।