आज एक ऐसे संवाददाता से फोन पर बात हो रही थी जो कथित किसानों का आंदोलन कवर करके आए थे। यूट्यूब पर मौजूद उनकी रिपोर्ट मैंने देखी थी । तो मैंने उनसे कहा कि रिपोर्टर जब बोलता है तो उसके मन में एक छन्नी लगी होती है । ये विचारों को छानने वाली मन की छन्नी होती है जो उन विचारों को अलग कर देती है… मन में ही दबा देती है… जो कड़वी सच्चाई होते हैं । रिपोर्टर बहुत सी बातें कह नहीं सकता है उसकी अपनी मजबूरियां होती हैं तो मैंने उनसे पूछा कि भाई आप अपने मन की बात मुझे बताओ… जो आपने असलियत में देखा है।
तो उन्होंने मुझे बताया कि कहीं से नहीं लगता कि ये किसानों का आंदोलन है… आंदोलन में मौजूद जो किसान हैं उनको भी अढ़ातिये ही फंडिंग कर रहे हैं । आंदोलनकारियों ने हाथों में Rado की मंहगी घड़ियां पहन रखी हैं । लोगों के हाथों में आईफोन से भी महंगे मोबाइल हैं । कई आंदोलनकारियों ने Gucci के महंगे चश्मे पहने हुए हैं । लोगों ने चलित घर बना लिए हैं । ट्रक्टर वैनिटी वैन बन गए हैं । लोग ट्रैक्टर के अंदर बने हुए घरों में जाकर सो जाते हैं । किसान और अढ़ाती के बाच फर्क करना बहुत मुश्किल है ।
आंदोलनकारियों को काजू का भंडारा करवाया जा रहा है लोगों को फ्री में बादाम के दूध पिलाए जा रहे हैं । समझ में नहीं आ रहा है कि आखिर इतना पैसा कहां से आ रहा है ? कई पोस्टर लगे हुए हैं जिसमें कनाडा की संस्थाओं के नाम लिखे हुए हैं । और सबसे ज्यादा परेशानी आसपास के गांव मोहल्ले वाले लोगों को हो रही है । क्योंकि उन्हें पैदल सफर करना पड़ रहा है । दूसरी तरफ आंदोलन में पूरा मेले जैसा माहौल है ।
हमें तो पता है कि इस फेब्रिकेटेड आंदोलन की असलियत क्या है ? इसीलिए…
जो तुमको हो पसंद वो बात नहीं कहेंगे… हम अढ़ाती को अढ़ाती और खालिस्तानी को खालिस्तानी ही कहेंगे।
हम जानते हैं कि हमारा सिख भाई कौन है और किसान असलियत में कौन है ?
सबसे महत्वपूर्ण बात ये है कि किसानों के बीच किसानों के ही भेष में मौजूद अढातियों ने किसानों को इस कदर भड़का दिया है कि वो किसानों की कोई बात सुनना ही नहीं चाहते हैं ।
-दिलीप पाण्डेय